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Jati Nirnay

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आर्यसमाज के प्रमुख सिद्धान्तों में एक सिद्धान्त है- ‘वर्ण व्यवस्था’। आर्यसमाज की मान्यता है कि वर्ण-व्यवस्था जन्म से नहीं अपितु गुण-कर्म-स्वभाव से होती है। पौराणिकों की मान्यता है कि वर्ण-व्यवस्था जन्म से होती है। जो ब्राह्मण के घर में पैदा हो गया वह निरक्षर है, प्याऊ पर बैठकर पानी पिलाता है, रेलवे स्टेशन पर कुलीगीरी करता है, वैश्यों के घर में रोटी बनता है, कपड़े धोता है, बच्चों का मल-मूत्र उठाता है, फिर भी वह ब्राह्मण है ? ऐसे ब्राह्मणपन को धिक्कार है ! ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को जानता है, जो वेदादि शास्त्रों का विद्वान् है, जो वेदादि शास्त्रों को पढ़ाता है, यज्ञ करता और कराता है, दान देता है और लेता है, जिसमें ये गुण दिखाई दें, वह किसी भी परिवार में उत्पन्न हुआ हो, ब्राह्मण है। प्रिंसिपल का पुत्र इसलिए प्रिंसिपल नहीं बन सकता, क्योंकि वह प्रिंसिपल के घर में पैदा हुआ है। शूद्र के घर में जन्मा बालक प्रिंसिपल बन सकता है, यदि उसमें योग्यता है, तो यह मोटी-सी बात है। मनुष्य एक जाति है, जैसे गाय, घोड़ा, ऊँट, हाथी, गधा आदि। ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जाति नहीं है, अपितु वर्ण हैं। आर्यजगत् के उद्भट विद्वान् पं० शिवशङ्कर शर्मा काव्यतीर्थ ने इसी विषय को लेकर एक ग्रन्थ लिखा था- ‘जाति-निर्णय’। पं० शिवशङ्कर जी ने वेद, दर्शन, उपनिषद्, ब्राह्मणग्रन्थ, रामायण, महाभारत और पुराणों के अकाट्य प्रमाण देकर यह सिद्ध किया है कि मनुष्यमात्र एक जाति है और वर्ण-व्यवस्था गुण-कर्म-स्वभाव से है। इस बात को सिद्ध करने के लिए पण्डितजी ने लगभग एक सहस्त्र प्रमाण दिये हैं, साथ ही प्रबल युक्तियाँ दी हैं। ग्रन्थ क्या है, अपने विषय का अनमोल रत्न है। यह ग्रन्थ बहुत समय से अप्राप्य था। घूडमल प्रह्लादकुमार आर्य-संस्थान के उत्साही मन्त्री श्री प्रभाकरदेव आर्य के सत्प्रयास से यह ग्रन्थ नई साज-सज्जा में प्रकाशित होकर पाठकों के करकमलों में पहुँच रहा है। जो प्रति प्रेस में दी गई थी, उसमें अशुद्धियों की भरमार थी। किसी-किसी मन्त्र में तो आठ-आठ अशुद्धियाँ थी। इसी प्रकार श्लोकों तथा अन्य उद्धरणों में भी अशुद्धियाँ थी। भाषा में भी अशुद्धियाँ थी। इस संस्करण में उन सभी अशुद्धियों को शोधा गया है। प्रत्येक प्रमाण का मूल ग्रन्थ से मिलान किया गया है। अनेक स्थानों पर जहाँ पते नहीं थे, वहाँ पादटिप्पणी मे पते दिये गये हैं। जहाँ पते ग़लत थे, उन्हें शोधा गया है। इस प्रकार पुस्तक को सर्वाङ्ग सुन्दर बनाने का प्रयत्न किया गया है।

Additional information

Weight 500 g
Dimensions 22 × 14 × 3 cm

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