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Jindagi Ka Safar Part 3 Zindagi Ka Safar

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Description

परिचय: इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ

भारतीय राजनीति की ऐतिहासिक घटनाएँ, विशेष रूप से 1968 में दिनदयाल उपाध्याय की हत्या से लेकर 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या तक, भारतीय समाज और राजनीतिक परिदृश्य में गहरा प्रभाव डालने वाली हैं। यह एक ऐसा कालखंड है जिसमें न केवल राजनीतिक संघर्ष की बुनियाद रखी गई, बल्कि विभिन्न विचारधाराओं के बीच टकराव भी हुआ। दिनदयाल उपाध्याय, जो भारतीय जनसंघ के एक प्रमुख नेता थे, की हत्या ने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ लाया और उनके विचारों और सिद्धांतों पर गहन चर्चाएँ आरंभ की। उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक शून्य उत्पन्न हुआ, जिसने विभिन्न राजनीतिक दलों को पुनर्नवीनित करने की प्रेरणा दी।

उपाध्याय की हत्या के तत्काल बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य राजनीतिक शक्तियों के बीच बढ़ता तनाव स्पष्ट हो गया। यह वह समय था जब विभिन्न मुद्दों पर राजनीतिक बहसें तीव्र हो रही थीं। इसके फलस्वरूप, दूसरी ओर इंदिरा गांधी का प्रभाव बढ़ता गया, जिन्होंने आपातकाल (1975-1977) के दौरान सत्ता को अपने हाथ में मजबूती से पकड़ा। इस दौरान उनकी नीतियों और निर्णयों की भी आलोचना की गई। ऐसा प्रतीत होता है कि देश में निरंतर बढ़ते राजनीतिक तनाव और इसके परिणामस्वरूप, इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोधाभासी विचारधाराएँ उत्पन्न हुईं।

इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई, जिसने देश को राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से गहरे आघात में डाल दिया। यह हत्या न केवल उनके प्रशंसकों के लिए एक क्षति थी, बल्कि यह एक युग के अंत का प्रतीक भी बन गई, जिसने भारतीय राजनीति में एक प्रचंड बदलाव लाया। इन घटनाओं के क्रम में, हम देखें तो यह स्पष्ट होता है कि उपाध्याय से लेकर गांधी तक की यात्रा में, भारतीय राजनीति के ताने-बाने में कई अनसुलझे प्रश्न और मनोवैज्ञानिक तनाव अंतर्निहित हैं।

दिनदयाल उपाध्याय का जीवन और उनके विचार

दिनदयाल उपाध्याय, एक प्रमुख भारतीय राजनीतिक विचारक और नेता, का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के एक छोटे से गाँव में हुआ था। वे एक साधारण परिवार से आते थे, उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के एक कार्यकर्ता के रूप में की। उपाध्याय के बचपन में ही उनमें देशभक्ति और सामाजिक सेवा की भावना विकसित हुई थी। उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद, उन्होंने भारतीय राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना आरंभ किया। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक बने, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) का आधार बना।

उपाध्याय के विचार भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण रहे हैं। उन्होंने समुचित समाजवाद का एक सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने “एकात्म मानववाद” के रूप में जाना। यह सिद्धांत मानवता के समग्र विकास पर केंद्रित था, जो आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को एकजुट करता है। उनका मानना था कि एक सच्चा समाजवादी समाज उस स्थिति में होता है जब सभी वर्गों और समूहों के हितों को ध्यान में रखा जाता है। उपाध्याय ने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति और परंपरा को राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए।

उनके विचारों ने भारतीय जनसंघ के गठन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने कांग्रेस के एकध्रुवीय शासन के खिलाफ एक विकल्प प्रस्तुत किया। वे सामाजिक समानता और समृद्धि की दिशा में प्रयासरत रहे, तथा उन्होंने हमेशा भारत की सम्पूर्णता और अखंडता के लिए काम किया। उपाध्याय का जीवन और उनके विचार आज भी समकालीन राजनीतिक विमर्श में प्रासंगिक बने हुए हैं, और उनका प्रभाव भारतीय राजनीति में महसूस किया जा सकता है।

हत्या की घटनाएँ और उनके परिणाम

दिनदयाल उपाध्याय की हत्या 1977 में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। वह भारतीय जनसंघ के नेता थे और उनकी हत्या ने न केवल उनके अनुयायियों को झकझोर दिया, बल्कि पूरे देश के राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित किया। घटनाएँ इस प्रकार सामने आईं कि उपाध्याय की हत्या के पीछे साजिश की आशंका व्यक्त की गई। अज्ञात व्यक्तियों द्वारा उनकी हत्या के कारण, भारतीय जनसंघ की स्थिति कमजोर हुई और इससे कुल मिलाकर भारतीय राजनीति में विद्वेष और अस्थिरता बढ़ गई। इस घटना का प्रभाव पार्टी के अंदर के सौहार्दपूर्ण वातावरण को समाप्त कर दिया, जिससे विभिन्न गुटों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई।

दिनदयाल उपाध्याय की हत्या के बाद, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सामने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई। इंदिरा गांधी ने उपाध्याय की हत्या के बाद तात्कालिक राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन साथ ही उनके अधीन कई नाजुक सवालों और विरोधों का सामना भी करना पड़ा। उपाध्याय की हत्या के बाद की राजनीतिक गतिविधियों और विरोधों ने एक नई राजनीतिक रुझान की शुरुआत की। इसके साथ ही, इंदिरा गांधी की सरकार ने भी इस घटना को एक प्रकार से अपने पक्ष में करने का प्रयास किया, जिससे उस समय देश की राजनीति में गहरी विभाजन रेखा बन गई।

1970 के दशक के अंत के कुछ वर्षों के भीतर ही इंदिरा गांधी की हत्या हो गई, जिसने भारतीय राजनीति में एक और गहरी ध्रुवीकरण की स्थिति पैदा कर दी। उपाध्याय और गांधी दोनों की हत्याएँ न केवल व्यक्तिगत दुखों का कारण बनीं बल्कि भारतीय राजनीति की दिशा को भी गहराई से प्रभावित किया। इन घटनाओं ने विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं के बीच एक गहरी खाई पैदा की और संपूर्ण राजनीतिक वातावरण को बदल दिया।

बलराज मधोक: एक प्रमुख राजनीतिक हस्ती

बलराज मधोक भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण नाम हैं, जिन्हें उनके अद्वितीय विचारों और राजनीतिक विचारधारा के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 25 फरवरी 1924 को जम्मू में हुआ था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य के रूप में की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी का आधार बना। मधोक का राजनीतिक सफर उनके सिद्धांतों और कार्यों के लिए जाना जाता है, जिनका उद्देश्य भारतीय समाज में एक सशक्त एवं प्रभावी नेतृत्व का निर्माण करना था।

मधोक ने भारतीय राजनीति में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज को उठाने का प्रयास किया। उन्होंने अनेकों बार यह स्पष्ट किया कि भारतीय संस्कृति और परंपराएं राजनीति का एक अभिन्न हिस्सा हैं। उनके विचारों ने न केवल जनसंघ के भीतर, बल्कि व्यापक स्तर पर भारतीय राजनीति में नए विचारों को बढ़ावा दिया। उन्हें एक दूरदर्शी नेता माना जाता था, जिन्होंने समाज की केंद्रीय समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया।

उनकी राजनीतिक भूमिका चाँद की तरह बदलती रही, और उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा में कई महत्वपूर्ण पदों का अनुभव किया। बलराज मधोक ने कई बार महत्वपूर्ण चुनावों में हिस्सा लिया और विभिन्न मुद्दों पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहे। उनके विचार और कार्य भारतीय राजनीति पर एक गहरा असर छोड़ते हैं, जो आज भी महसूस किए जाते हैं। बलराज मधोक ने अपनी पहचान एक मजबूत और स्पष्ट विचारधारा के रूप में बनाई, जो उन्हें भारतीय राजनीति के एक प्रमुख हस्ती के रूप में स्थापित करती है।

समाज और राजनीति पर इन घटनाओं का प्रभाव

भारतीय समाज और राजनीति पर बलराज मधोक की हत्या और इंदिरा गांधी की हत्या के प्रभाव का अध्ययन करते समय, हमें यह देखना होगा कि ये दुखद घटनाएँ किस प्रकार से सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित करती हैं। उपाध्याय की हत्या ने भारतीय जनसंघ के विचारधारा को बहुत प्रभावित किया। इससे संघ परिवार के अन्य संगठनों के प्रति एकजुटता और गतिविधियों में तेजी आई। जबकि गांधी की हत्या ने कांग्रेस पार्टी के अंदर गहरे बदलाव का मार्ग प्रशस्त किया। यह दोनों घटनाएँ राजनीतिगत बदलाव के प्रतीक के रूप में देखी जा सकती हैं, जो समाज में अस्थिरता और भय की भावना को जन्म देती हैं।

इन घटनाओं के परिणामस्वरूप, विभिन्न विचारधाराएँ और राजनीतिक दल एक नई उर्जा प्राप्त कर पाए। इसके चलते, समाज ने सांप्रदायिक और विचारधारात्मक विचारों को लेकर नए सिरे से विचार करने की आवश्यकता महसूस की। लोग इस विचार पर ध्यान केंद्रित करने लगे कि सत्ता की प्राथमिकता क्या होनी चाहिए, और उनके दृष्टिकोण में एक नया दृष्टिकोण विकसित हुआ। इससे राजनीतिक दलों के बीच की प्रतिस्पर्धा में नयी दिशा मिली, जहां विश्वास और संबंधों की नई परिभाषाएँ खोजी जाने लगी।

आज की राजनीति में उपाध्याय और गांधी की हत्या के ऐसे प्रभावों को देखकर, यह स्पष्ट होता है कि इतिहास खुद को दोहराता है और घटनाएं एक नए राजनीतिक समीकरण की उत्पत्ति करती हैं। विभिन्न राजनीतिक विचारधाराएँ तो आगे बढ़ती हैं, लेकिन उनका मूल उद्देश्य कई बार समान होता है। समाज ने भी स्वयं को सतर्क किया है और अब वह राजनीतिक दलों के प्रति अधिक जागरूक और समंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण रखने लगा है। इस प्रकार, इन घटनाओं ने भारतीय राजनीति के परिदृश्य में स्थायी परिवर्तन किए हैं।

 

Additional information

Weight 400 g
Dimensions 21 × 30 × 2 cm

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