Jyotish Vivek spiral binding
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Description
ज्योतिष शास्त्र किस रूप में वेद का अङ्ग है इसका प्रतिपादक श्लोक समक्ष ग्राया-
वेदास्तावद्यज्ञकर्मप्रवृत्ता यज्ञा प्रोक्तास्ते तु कालाश्रयेण । शास्त्रादस्मात् कालबोधो यतः स्याद्वेदाङ्गत्वं ज्योतिषस्योक्तमस्मात् ।।
वेद यज्ञ कर्म में प्रवृत्त हैं (अर्थात् यज्ञ में पढ़ने के लिए वेदों का ग्रावि- र्भाव हुम्रा) यज्ञ काल से सम्बद्ध है। इस शास्त्र से काल का बोध होता है। इसलिए यह शास्त्र वेद का अङ्ग है। इसको पढ़कर मन में आन्दोलन हुआ । १२ वर्षों से निरन्तर मैं गुरुकुल में यही पढ़ता और पढ़ाता रहा कि वेद सब विद्याग्रों का पुस्तक है। अव यह अन्वेषण प्रारम्भ हुआ कि ज्यौतिप क्या है और उसका वेद से क्या सम्बन्ध है। इसके परिणाम का एक भाग हो प्रस्तुत ग्रन्य ज्यौतिषविवेक है।
ज्योतिष को तीन भागों में बांटा जा सकता है। १- सिद्धान्त ज्योतिष । इसमें सम्पूर्ण भूगोल और खगोल विद्या का वर्णन होता है। इसको जनसामान्य से लेकर विद्वानों तक सब पढ़ सकते हैं और समझ सकते हैं। २- सिद्धान्त- ज्योतिष सगणित । इसमें प्रथम भाग में णित सिद्धान्तों को गणित के द्वारा साक्षात् किया जाता है। इसको केवल गणित के विद्वान् ही जान सकते
Additional information
Weight | 400 g |
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Dimensions | 21 × 30 × 2 cm |
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