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Laghu Siddhant Kaumudi – Bhaimi Vyakhya Set of 6 Volumes

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संस्कृत के विद्यार्थियों के लिये विशेष उपयोगी इस पुस्तक में टिप्पणी के द्वारा कठिन सूत्रों का अर्थ सरल संस्कृत में देकर उदाहृत पदों में उनका समन्वय दिखाया गया है। प्रत्येक प्रकरण के कठिन पदों का संस्कृत में साधन दिया गया है और उदाहरण में आये हुए प्रत्येक पदों का अर्थ भी दिया गया है। कारक, भावकर्म, कर्मकर्तृ आदि गम्भीर प्रकरणों का मर्म सरलता से समझाया गया है एवं कृदन्त शब्दों के मूल धातुओं का परिचय कराया गया है।

Description

संस्कृतभाषा अनेक भाषाओं की जननी तथा विश्व की एक अत्यन्त प्राचीन समृद्ध भाषा है। विश्व का अद्ययावत् ज्ञात प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद इसी भाषा में ही निबद्ध है। यदि कोई संस्कृतभाषा पर अधिकार कर ले तो विश्व की अनेक भाषाओं पर उसका आधिपत्य अल्प आयास से ही सिद्ध हो सकता है। इसके अतिरिक्त संस्कृताध्ययन का एक और भी बड़ा प्रयोजन है। क्योंकि विश्व के अनेक देशों की सांस्कृतिक परम्पराओं वा कलाकौशल आदि विद्याओं का आधार या उठप्रेरक भारत और तत्कालीन भाषा संस्कृत ही रही है अतः संस्कृत के ज्ञान से ही उनका ज्ञान सम्भव है। आजकल के नवप्रसूत भाषाविज्ञान जैसे अपूर्वशास्त्र का भी एक प्रमुख आधारस्तम्भ संस्कृतभाषा का अध्ययन ही रहा है। हिन्दू- आर्यों के लिए संस्कृतभाषा का जानना और भी आवश्यक है क्योंकि उनकी निखिल धार्मिक वाः सांस्कृतिक परम्पराएं संस्कृतभाषा में ही निबद्ध हैं। संस्कृतभाषा में केवल भारत का ही नहीं अपितु विश्व और मानव जाति के हज़ारों वर्ष पूर्व का इतिहास अब इस जीर्ण अवस्था में भी सुरक्षित है। अतः इतिहास-ज्ञान की दृष्टि से भी यह भाषा कम उपादेय नहीं है।
संस्कृतभाषा यद्यपि हजारों वर्षों तक लोकव्यवहार वा बोलचाल की भाषा रह चुकी है और उसमें यह उपयोगी गुण संसार की. किसी भी भाषा से कम नहीं है तथापि विधिवशात् लोकव्यवहार वा बोलचाल से सर्वथा उठ जाने के कारण वह आज मृतभाषा (Dead Language) कही जाती है। अतः आज के युग में उसका अध्ययन विना व्याकरणज्ञान के होना सम्भव नहीं। इसके साथ ही यह भी ध्यातव्य है कि संसार में केवल संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जिसके व्याकरण सर्वाङ्गीण और पूर्ण परिष्कृत कहे जा सकते हैं। संस्कृतभाषा के इन व्याकरणों में महामुनिपाणिनि-प्रणीत पाणिनीयव्याकरण ही इस समय तक के बने व्याकरणों में सर्वश्रेष्ठ, अत्यन्त परिष्कृत, वेदाङ्गों में गणनीय, प्राचीन तथा लब्धप्रतिष्ठ है। व्याख्योपव्याख्याओं तथा टीकाटिप्पण के रूप में जितना इसका विस्तार हुआ है उतना शायद भारत में किसी अन्य व्याकरण वा विषय का नहीं हुआ। आज भी लगभग एक हजार से अधिक ग्रन्थ पाणिनीयव्याकरण पर उपलब्ध हैं।
महामुनि पाणिनि का काल अभी तक ठीक तरह से निश्चित नहीं हुआ। परन्तु अनेक विद्वानों का कहना है कि उनका आविर्भाव भगवान् बुद्ध (५४३ ई० पूर्व) से बहुत पूर्व हो चुका था। कारण कि भगवान् बुद्ध के काल में जहां पाली और प्राकृत भाषाएं जनसाधारण की भाषाएं थीं वहां पाणिनि के काल में उदात्तादिस्वरयुक्त संस्कृतभाषा का ही जनभाषा होना अष्टाध्यायी के अनेक साक्ष्यों से सुतरां सिद्ध होता है।’ पाणिनि ने स्वयं भी लोकंभाषा को अष्टाध्यायी में ‘भाषा’ के नाम से अनेकशः प्रयुक्त किया है। जो लोग अष्टाध्यायी में आये श्रमण, यवन, मस्करिन् आदि शब्दों को देखकर पाणिनि को बुद्ध और सिकंन्दर से अर्वाचीन सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं वे भ्रान्त हैं, क्योंकि ये शब्द तो बुद्ध से बहुत पूर्व ही भारतीयों को परिचित थे। सन्न्यासी अर्थ में श्रमण शब्द ब्राह्मणग्रन्थों में प्रयुक्त है। मस्करिन् शब्द दण्डधारण करने के कारण साधारण परिव्राजकमात्र का वाचक है बुद्धकालीन मंखली गोसाल नामक आचार्य का नहीं। यवनजाति से तो भारतीय लोग यूनानी सम्राट् सिकन्दर के भारत पर आक्रमण करने से बहुत पहले ही परिचित थे। महाभारत में अनेक स्थानों पर यवनजाति का उल्लेख आंया है। भगवान् कृष्ण का भी कालयवन से युद्ध हुआ था। इसके अतिरिक्त अष्टाध्यायी में निर्वाणोऽवाते (८.२.५०) सूत्र में प्रतिपादित ‘निर्वाण’ पद बौद्धकालिक (मोक्ष) अर्थ की ओर संकेत नहीं करता अपितु ‘निर्वाणः प्रदीपः’ (दीपक बुझ गया) अर्थ की ओर संकेत करता है, इससे भी पाणिनि का बुद्ध से पूर्वभावी होना निश्चित होता है

Additional information

Weight 3399 g
Dimensions 22 × 14 × 14 cm

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