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Presentation of Vedic Literature Mahakavi Dandipranitam Dashkumarcharitam
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उद्भट आलङ्कारिक मम्मट भट्टकी- “तददोषौ शब्दाऽथर्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वाऽपि।।” इस उक्तिके अनुसार श्रुतिकटु-आदि दोषसे रहित प्रसाद-आदि गुणोंके सहित, कहीं-कहीं स्फुट अलङ्कारसे रहित शब्द और अर्थ “काव्य” माना गया है। काव्यके भी साधारणतया दो भेद माने गये हैं- पद्य और गद्य। पद्यके खण्डकाव्य और महाकाव्य आदि अनेक भेद माने गये हैं। इसी प्रकार गद्यके भी कथा और आख्यायिका दो भेद माने गये हैं। काव्यप्रकाशकार मम्मट भट्ट ही- “काव्यं यशसेऽर्थकृते, व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये । सद्यः परनिर्वृत्तये; कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ।। इस कारिकामें यश, अर्थ, व्यवहारका परिज्ञान, अकल्याणकी क्षति, सुनने वा देखनेके अनन्तर ही उत्कृष्ट आनन्दप्राप्ति और कान्तासम्मित उपदेशका योग इस प्रकार काव्यके छः प्रयोजनोंका उल्लेख करते हैं। दशकुमारचरित प्रस्तुत ग्रन्थ कविवर दण्डीका कथारूप गद्यकाव्य है। पद्यकाव्यमें छन्द आदिपर निर्भर रहनेसे कुछ दोष क्षम्य भी माने जा सकते हैं, पर गद्यकाव्यमें नहीं। अतएव प्रसिद्ध है कि “गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति” अर्थात् गद्यकाव्य कविकी शक्तिकी परीक्षाका “निकषग्रावा” कसौटी माना जाता है। हमलोग संस्कृत भाषाके साहित्यमें ही नहीं विश्वकी अन्य भाषाओंके साहित्य में भी पद्मका ही पहला स्थान देखते हैं। संस्कृत वाङ्मयमें तो विश्वमें सर्वसम्मत प्राचीनग्रन्थ ऋग्वेदसे लेकर वाक्यपदीय आदि व्याकरणग्रन्थ, ज्यौतिष, आयुर्वेद, इतिहास-पुराण आदि अनेक शास्त्रग्रन्थ हम पद्यमय ही पाते हैं। इसप्रकार संस्कृत वाङ्मयमें पद्यकी प्रचुरता उपलब्ध होती है। संस्कृत साहित्यमें कथारूप दशकुमारचिरतके कर्ता कविप्रकाण्ड अलङ्कारशास्त्री पण्डितवरेण्य दण्डी है। नामसे-दण्डीकी अन्य रचनाओं के विषयमें बृहच्छाङ्गधरपद्धतिमें कविराज राजशेखरके ‘त्रयोऽग्नयस्त्रयो देवास्त्रयो वेदास्त्रयो गुणाः। त्रयो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिशु लोकेषु विश्रुताः ।।’ अर्थात् दक्षिणाऽग्नि, गार्हपत्य और आहवनीय ये तीन श्रौत अग्निवर्ग, ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर ये तीन देवताएँ, सत्त्व, रज और तम ये तीन गुण और कवि दण्डीके तीन प्रबन्ध (रचनाएँ) स्वर्ग, मर्त्य और पाताल इन तीनों लोकोंमें विख्यात हैं। इस पद्ममें कथित दण्डीके तीन प्रबन्ध कौन हैं इस विषयमें विवादका निर्णय नहीं हो पाया है। इनमें एक तो दशकुमारचरित (गद्य काव्य) है और दूसरा काव्यादर्श (अलंकार शास्त्र) है, यहाँ तक किसीको कुछ भी आपत्ति नहीं। परन्तु तीसरे प्रबन्धमें पर्याप्त आपत्ति है। कोई कहता है वह तीसरा प्रबन्ध छन्दोविचिति नामका छन्दोग्रन्थ है, जो अभी नहीं मिल रहा है। कोई “अवन्तिसुन्दरीकथा” को ही तीसरा प्रबन्ध मानते हैं, जो अपूर्ण है। कुछ लोग “मुकुटताडितिक” नामक ग्रन्थको ही तीसरा प्रबन्ध मानते हैं, जो संभवतः नाटक है और उपलब्ध भी नहीं है। कविवर दण्डीने “काव्यादर्श” नामके अपने अलंकारशास्त्रमें आन्ध्र और चोल देशोंका, कावेरी नदीका और काञ्चीके पल्लवगणोंका उल्लेख किया है, तथा वैदर्भी रीतिकी प्रशंसा की है, अतः वे दाक्षिणात्य थे ऐसी संभावना की जाती है। दण्डी अपने काव्यादर्शमें महाकवि कालिदासके “मलिनमपि हिमांऽशोर्लक्ष्म लक्ष्मी तनोति।” इसका उद्धरण कर- होते हैं। ऐसा लिखते हैं, अतः दण्डी कवि वि० प्रथम शतकके कालिदासे परवर्ती सिद्ध “लक्ष्म लक्ष्मीं तनोतीति प्रतीतिसुभर्ग वचः ।।” १-४५ दण्डीने इसी प्रकार- “सागरः सूक्तिरत्नानां सेतुबन्धादि यन्मयम् ।” काव्यालं० १-३४ इस पद्यसे प्रवरसेनकी प्रशंसा की है, विलक्षण कवि कह्नणकी राजतरङ्गिणीके अनुसार प्रवरसेन खूष्ठकी छठी शताब्दीमें थे, अतः कविराज दण्डी प्रवरसेनके परवर्ती थे यह प्रतीत होता है। वासवदत्ताकार सुबन्धुकी भाषा और रीतिकी तुलना करने पर दण्डी सुबन्धुके पूर्ववतीं थे ऐसा मानना पड़ता है। एवम् -“जाते जगति वाल्मीकौ कविरित्यभिधाऽभवत् । कवी इति ततो व्यासे कवयस्त्वयि दण्डिनि।।”
Categories: ऋषि-मिशन, चौखम्बा प्रकाशन
Additional information
| Weight | 425 g |
|---|---|
| Dimensions | 18 × 12 × 3 cm |
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