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Maharshi Dayanand Ka Darshanik Chintan Ek Shodh Granth

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Description

महर्षि दयानंद का जीवन और उनके सिद्धांत

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को वर्तमान लड़ाख क्षेत्र में हुआ था। उनका वास्तविक नाम “मुलशंकर” था। उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान विभिन्न धार्मिक प्रथाओं और अंधविश्वासों का सामना किया। यह अनुभव उन्हें वेदों की ओर प्रेरित किया और उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन करना शुरू किया। महर्षि दयानंद ने वेदों को मानवता के लिए सर्वोच्च ज्ञान का स्रोत माना और उनके महत्व को बढ़ाया।

महर्षि दयानंद का दार्शनिक चिंतन समाज सुधार के प्रति उनकी अपार प्रतिबद्धता से प्रभावित हुआ। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त विषमताओं को दूर करने के लिए एक सक्रिय भूमिका निभाई। स्वराज का सिद्धांत उन्हें उस समय के राजनीतिक परिवेश में आवश्यक लगा, जब भारत अंग्रेजी उपनिवेशवाद के शिकंजे में था। महर्षि ने स्वराज को केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक और धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में देखा। उनके विचारों में स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक मुक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि यह आत्मज्ञान और आत्मनिर्भरता की ओर भी इंगित करता है।

महर्षि दयानंद के मुख्य सिद्धांतों में आत्मज्ञान का महत्व विशेष रूप से उभरकर सामने आता है। उन्होंने यह सिद्धांत रखा कि आत्मा अनंत और अमर होती है, जो सभी प्राणियों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। उनका यह दृष्टिकोण न केवल आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज के सभी वर्गों के बीच समानता और भाईचारे को भी बढ़ावा देता है। इस प्रकार, महर्षि दयानंद का दार्शनिक चिंतन और उनके सिद्धांत आज भी समाज में प्रासंगिक हैं और उनके विचारों की व्यापक अपील बनी हुई है।

महर्षि दयानंद के दार्शनिक विचार और उनका प्रभाव

महर्षि दयानंद सरस्वती, जिन्हें भारतीय समाज में एक प्रमुख विचारक के रूप में माना जाता है, के दार्शनिक विचारों ने उनके समय और सामयिक संदर्भ में गहरा प्रभाव डाला है। उनका दृष्टिकोण मानवता, धर्म और सामाजिक न्याय पर आधारित था। उन्होंने भारतीय संस्कृति को एक नई दिशा देने का प्रयास किया এবং अपने विचारों के माध्यम से समाज में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया। महर्षि दयानंद का मानना था कि मानव जीवन का उद्देश्य सत्य की खोज करना है और यह धर्म का मूल है।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि सच्चा धर्म वह है जो मानवता की भलाई के लिए कार्य करता है। दयानंद ने सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई और जातिवाद, मूर्तिपूजा और अंधविश्वास को नकारा। उनका विचार था कि शिक्षा ही समाज में सुधार ला सकती है। वह भारत के लोगों को जागरूक करने के लिए प्रतिबद्ध थे और उन्होंने स्वराज की आवश्यकता और धार्मिक एकता पर जोर दिया। ऐसे में उनके विचारों का भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसने न केवल उन्हें मार्गदर्शन दिया, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट भी किया।

महर्षि दयानंद के विचार आज भी सामयिक रूप से प्रासंगिक हैं। आधुनिक समाज में जहाँ आलोचना, भिन्नता और असहिष्णुता की स्थिति है, वहाँ उनके सिद्धांत हमें एकजुट करने और मानवता के मूल्यों को मान्यता देने का मार्गदर्शन कर सकते हैं। उनके विचारों ने कई विचारकों और विद्वानों को प्रभावित किया है, जो उनके दृष्टिकोण को आज भी महत्वपूर्ण मानते हैं। इस प्रकार, महर्षि दयानंद का दार्शनिक चिंतन भारतीय समाज में एक स्थायी छाप छोड़ गया है।

Additional information

Weight 700 g
Dimensions 25 × 18.5 × 3 cm

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