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Mimansa Darshan

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न्याय वैशेषिक, सांख्य, योग, वेदान्त, इन पाँच दर्शनों के भाष्य तथा सांख्य-वर्णन कर ऋतिहास एवं वेदान्तदर्शन का इतिहास और सांख्यसिद्धान्त, इन ग्रन्थों • प्रकाशित हो जाने पर मीमांसादर्शन का भाष्य लिखने का अवसर आया । मीमांसावन का कलेवर अन्य पाँच दर्शनों के मिश्रित कलेवर से भी ड्योढ़ा है। मेरा सन्‌मान था कि परिश्रमपूर्वक लिखते हुए और ऐसे कार्यों में जो अनेक प्रकार की विच्न बाधायें आती रहती हैं उनको लाँघते हुए इस दर्शन का भाष्य लगभग जाती वर्ष ले लेगा। भविष्यत् का किसी को पता नहीं, फिर भी इस लम्बे और पुच्छ कार्य को करने के लिए तत्पर हो गया।
अन् का ध्यान करते हुए एवं गुरुचरणों के आशीर्वाद की भावना से प्रेरित श्रीकर विनाका १४/२/१६८० को यह कार्य प्रारम्भ कर दिया। लगभग साढ़े पाँच वर्ग जब जब अन्य कार्यों से समय मिलता रहा, इसके लिखने में लगाता रहा। इनमे समय में तीन अध्याय पूरे लिखे जा सके, जिनमें कुल मिलाकर १६ पाद हैं
श्रीमांसा के कलेवर के अतिरिक्त मेरे सामने बड़ी समस्या यज्ञ में आमिष के की रही है। जिन पशुओं के आमिष का प्रयोग यज्ञों में बताया जाता है, वे और मथा। इनको हिन्दी में बकरा, मेढ़ा और गाय कहते हैं। जिस बातावरण में रहते हुए मैंने शिक्षा प्राप्त की, वहाँ यज्ञों में आमिष के प्रयोग को जमिनिश्चित कार्य माना जाता है। मेरे लिए यज्ञ में आमिष के प्रयोग की समस्या कासमा अत्यन्त दुरूह था ।
ईसवी सन् १९८४ में पानीपत आर्यसमाज का शताब्दी समारोह आयो-जित हुआ था। उसमें वैदिक श्रौत कर्मों के विशेषज्ञ विद्वान् महाराष्ट्र प्रदेश से बाचित किये गये थे। मुझे भी उस समारोह में उपस्थित होने का सुअवसर प्राप्त । महाराष्ट्र के ये विशेषज्ञ कर्मकाण्डी विद्वान् युधिष्ठिर मीमांसक की प्रेरणा चुना गये थे। शताब्दी के अवसर पर मीमांसक जी के सम्पर्क में उन विद्वानों के असुल महानु‌भाव के साथ चर्चा करने का मुझे अवसर मिला। बातचीत के सिल-जिले में उन महानु‌भाव से ज्ञात हुआ कि यज्ञ में आमिष का जो प्रयोग किया आता है, उसकी मात्रा तीन-चार माशा या अधिक-से-अधिक छः माशा होती है।

Additional information

Weight 1200 g
Dimensions 22 × 14 × 6 cm

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