Mimansak lekhavali Vaidik Siddhant mimansa Vol. 1-2
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Description
वेदों का महत्त्व और उनके प्रचार के उपाय ओम् बृहस्पते प्रथमं वाचो अर्थ परं रत नामवेयं दधानाः । रेषा श्रेष्ठं यदप्रिमासीत् प्रेणा सबैषां निहितं गुहाविः ।। ऋ० १००७१।१।। यह सच विद्वानों को विदित ही है कि हम वैदिक धर्मानुयायियों के लिए वेद ही परम प्रमाण है। जन्म से लेकर मरणपर्यन्त सव संस्कार, अभ्युदय और निःश्रेयस् सम्बन्धी सब व्यवहार वेदों पर ही आश्रित हैं । अब भी धर्मप्रधान लोगों के लिए वेद ही परम प्रमाण हैं । इसीलिये हमारे ब्राह्मणों ने अभी तक बड़े प्रयत्न से उनको ऐसे कण्ठस्थ करके सुरक्षित रखा हैं कि जिससे उनमें एक स्थान पर भी स्वर – मात्रा-वर्ण का विपर्यास नहीं मिलता । – ऐसा होने पर यह विचार पैदा होता है कि ऐसा क्या कारण है. जिससे वैदिक मत के अनुयायी प्रधानता से वेदों का ही आश्रय लेते हैं ? यदि हम ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर विचार करें, तो हमें यह ज्ञात होता है कि पूज्य महर्षि ब्रह्मा से लेके स्वामी दयानन्द सरस्वती’ पर्यन्त जो ऋषि मुनि और आचार्य हुये, उन्होंने – ‘वेद सब विद्याओं को, और वर्तमान भूतं भविष्यत् के लिये उपयोगी ज्ञान की खान हैं’ ऐसा माना है । वेदों में जिस प्रकार का सूक्ष्म और अनिन्द्रियगोचर (= जो इन्द्रियों से जाना नहीं जा सकता) ज्ञान है, उस प्रकार का और कहीं नहीं है । इसलिये भगवान् मनु ने कहा है- ‘सेनापत्यं च राज्यं च सर्वलोकाधिपत्यं च दण्डनेतृत्वमेव च वेदशास्त्रविदर्हति ॥ १. द्र० – “संस्कृत साहित्य का आरम्भ ऋग्वेद से होता है, और उसकी समाप्ति स्वामी दयानन्द की ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ पर होती है ” ( हम भारत से क्या सीखें’ -इसके तृतीय भाषण में, पृष्ठ १०२) । २. द्र० पदार्थ- ज्ञान के विषय में वेदों में बड़ी दक्षता है। पूना प्रवचन, पृष्ठ ४४ (स्वामी दयानन्द का वेदविषयक पांचवा व्याख्यान) ।
Additional information
Weight | 1000 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 5 cm |
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