Nighantu Vedang Prakash Vol 14
Original price was: ₹50.00.₹45.00Current price is: ₹45.00.
यह ग्रन्थ ऋग्वेदी लोगों के पठितव्य दश ग्रन्थों में है। विशेष कर वेद और सामान्य से लौकिक ग्रन्थों से भी सम्बन्ध रखता है। यह मूल और इसका भाष्य ‘निरुक्त’ यह दोनों ग्रन्थ वास्कमुनिजी के बनाये हैं। सदा से चले आने से प्राचीन हैं। इस को बहुत पुस्तकों से मिलाकर जो जो पुस्तकान्तरों में विशेष शब्द पाये वे नोट में धर दिये हैं। अकारादिशब्दक्रम से इसकी शब्दानुक्रमणिका भी बनाकर छपवाई है कि जिससे जिस शब्द को देखना चाहै झटिति देख सकता है।
इसमें पांच अध्याय हैं। इसके प्रथम अध्याय में १७ खण्ड, द्वितीयाध्याय में २२, तृतीयाध्याय में ३०, चतुर्थाध्याय में ३ और पञ्चमाध्याय में ६ खण्ड हैं। इसकी शब्दानुक्रमणिका में प्रथम कोष्ठ में अकारादि शब्द और द्वितीय में जिसका नाम है, लिखा है। तृतीय श्रङ्क से अध्याय और चतुर्थ से खण्ड समझना। परन्तु यह सब शब्द वेद में यौगिक और योगरूढ़ि आते हैं, केवल रूढ़ि नहीं। इसमें जो पदनाम हैं वे पदधातु के गत्यर्थ अर्थात् ज्ञान, गमन, प्राप्त्यर्थ के वाचक होकर यौगिक हो जाते हैं।
यह ग्रन्थ सर्वत्र उपलब्ध नहीं था, अब छपने से प्राप्त होने लगा है। इस से बड़ा उपकार यह होगा, कि जो पुराणवालों ने अर्थ का अनर्थ किया है, सो इन आर्षग्रन्थों से निवृत्त होकर सब के आत्मा में सत्य का प्रकाश होगा। निदर्शन- जैसे-पुराणी लोगों ने वृत्र, शम्बर और असुर शब्द से दैत्य, निघण्टु में- मेघ । पु०- अहि शब्द से सर्प, नि० मेघ । पु०- अद्रि, गिरि तथा पर्वत से केवल पहाड़, नि०- मेघ। पु० अश्मा, ग्रावा शब्दों से पाषाण और नि०- मेघ। पु० वराह से सुअर, नि०- मेघ । पु० धारा से जल का प्रवाह, नि० वाणी। पु० गौरी से महादेव की स्त्री, नि० वाणी। पु० कर्मकाण्डी ‘स्वाहा’ शब्द से अग्नि की स्त्री और स्वधाशब्द से पितृ की स्त्री, नि०- स्वाहा से वाणी और स्वधा से अन्न । पु० शची शब्द से इन्द्र की स्त्री, नि० में वाणी, कर्म और प्रज्ञा का नाम है।
पुराणी लोग – शचीपति शब्द से देवों का राजा इन्द्र, और वेद में वाणी, कर्म और प्रज्ञा का पालन करनेहारा स्वामी लिया जाता है। पु० गय शब्द से एक मृतकों के अर्थ पिण्डप्रदानार्थ स्थानविशेष, और निघण्टु में अपत्य, धन और गृह का नाम है। पु० घृताची शब्द से देवलोक की वेश्या विशेष स्त्री, और
निघण्ट में रात्रि का नाम है। आज कल के लोग विप्र शब्द से केवल ब्राह्मण, और निघण्टु में बुद्धिमान् का नाम है। पु०- श्रद्धा से प्रीति और श्राद्ध से मृतकों की तृप्ति मानते हैं, और निघण्टु में थत् शब्द से सत्य और जिस क्रिया से सत्य का ग्रहण हो वह श्रद्धा, और जो इससे धर्मयुक्त कर्म किया जाय सो श्राद्ध कहाता है।
अब कहां तक लिखें, मनुष्य लोग जब इस कोश को पढ़ेंगे, तभी नवीन पुराणादि ग्रन्थों का मिथ्यापन और वेदों का सत्यत्व तथा वेदों के अर्थ करने में प्रवृत्ति अपने आप हो जायगी, तब तक वेदार्थ में प्रवृत्ति नहीं होती और व्याकरणादि का पढ़ना निष्फल है।
यद्यपि जहां तहां यन्त्रालयों में निघण्टु छपा है, तथापि इसके छापने का मुख्य प्रयोजन यही है कि अकारादिशब्दक्रम से इसके साथ शब्दानुक्रमणिका ठिकाने के सहित छपवा दी है कि जिस शब्द को निकालना चाहें, उसको शब्दानुक्रमणिका के अनुकूल देख के शीघ्र निकाल लेवेंगे। इससे जिसको ग्रन्थ कण्ठस्थ न होगा वह भी शब्दानुक्रमणिका से लाभ ले सकेगा । अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्वर्येषु ।।
इति भूमिका समाप्ता ।।
Additional information
Weight | 142 g |
---|---|
Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.
Reviews
There are no reviews yet.