Paniniy Praveshika
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Description
संस्कृत भाषा हमारी जाति के बहुमूल्यतम रत्नों का कोष है, हमारे धर्मग्रन्थों का प्राण है। देववाणी कहकर हम उसका आदर करते हैं और न जाने हमारे कितने श्रद्धामयभाव उसके चरणों में उपहार होते हैं। इन सबके साथ जातीयता की दृष्टि से सबसे बड़ी महत्त्व की बात यह है कि हमारे भावी साहित्य कल्पतरु का, क्या शब्दकोष की दृष्टि से, क्या भावों की दृष्टि से एकमात्र जीवन संस्कृत-साहित्य है। कोई भारतीय बालक और विशेषतः आर्य्यबालक संस्कृत नहीं कहला सकता जबतक उसे संस्कृत का ज्ञान न हो । यही कारण है कि आज हमारे देश में संस्कृत पढ़ने के लिये एक नया उत्साह जागृत हुआ है। किन्तु कहते दुःख होता है कि कितने ही उत्साह दीपक सहानुभूति का वायु न मिलने के कारण बुझ जाते हैं। सहानुभूति तो एक ओर रही जब कोई नवीन प्रविविक्षु किन्हीं पण्डित महाराज के पास जाता है तो पहिले उनके परिश्रम के चित्रण से ही वह इतना घबरा जाता है कि आगे पढ़ने को चित्त नहीं होता । और यदि उसने कहीं हतोत्साह न होकर दो-चार दिन पढ़ने की धृष्टता भी की तो पण्डित जी की परिभाषा-जटिल वाक्य-रचना में उलझकर तो अवश्य ही उसे हथियार रख देने पड़ते हैं। फिर वह न केवल स्वयं हतोत्साहित होता है किन्तु अपने सरीखे अनेक नवोत्साहियों को उल्टे पैर फिरा देता है। एक ओर तो हमारी श्रमशक्ति का ह्रास दूसरी ओर यह भारी चित्रण ! पग आगे कैसे चले । इन्हीं सब कारणों ने मुझे यह प्रवेशिका लिखने को बाधित किया है।
Additional information
Weight | 145 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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