Paraskar Grihya Sutra
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भारतीय ऋषि-मुनियों के प्रातिभ अनुभूतियों के परिप्रेक्ष्य में वैदिक- वाङ्मय का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस वाङ्मय में आधुनिक विज्ञान से भी उदात्ततर वैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। वैदिक वाङ्मय की उपेक्षा ही इस जीवन्त तथ्य की विस्मृति का कारण है। जहाँ तक गृह्यसूत्रों में वर्णित याज्ञिक तत्त्व का प्रश्न है, यह भी ध्यान देने योग्य विषय है। एक यज्ञ वह है जिसका अनुष्ठान निरन्तर प्रकृति द्वारा चलता रहता है। जिसके द्वारा यह विराट् जगत् अनिश उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के क्रम में संचालित है । दूसरे प्रकार का यज्ञ लोकव्यवहार और लोकजीवन के लिए नितान्त आवश्यक है। इसका मूल उद्देश्य है समाज कल्याण के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पण तथा व्यक्तिनिष्ठ देवतापरक उपासना ।
वर्तमान विज्ञान का मूलाधार विद्युत् शक्ति है; और वैदिक विज्ञान का मूलाधार प्राणशक्ति है। प्राणशक्ति का आयाम विद्युत् शक्ति की अपेक्षा अधिक व्यापक है। विद्युत् शक्ति भी प्राणशक्ति का एक भेद है। देवता, ऋषि, पितृ, गन्धर्व आदि इसी प्राणशक्ति के उपभेद हैं। इनके संकेतों से सम्पूर्ण वेदवेदाङ्ग भरे हुए हैं।
हमारे भारतीय धर्म के प्रधान पीठ ये वेद ही हैं। ये अत्यन्त समादरणीय हैं। वेदों का अक्षर-अक्षर पवित्र माना जाता है। इसमें किसी प्रकार का परि- वर्तन-परिवर्द्धन क्षम्य नहीं है। इनके स्वरूप और अर्थ-संस्क्षण हेतु ही वेदाङ्ग साहित्य का सृजन हुआ। इस सहायक वैदिकवाङ्मयं का सृजन उपनिषत् काल में ही हो गया था। सर्वप्रथम षड्वेदाङ्गों की चर्चा तथा उनके क्रम का वर्णन हमें ‘मुण्डकोपनिषद्’ (१।१५) में प्राप्त होता है। अपरा विद्या के अन्तर्गत चारों वेदों के बाद वेद के षडङ्गों का ही नामोल्लेख हुआ है। उनके नाम और क्रम इस प्रकार हैं- (१) शिक्षा, (२) कल्प, (३) व्याकरण, (४) निरुक्त, (५) छन्द और (६) ज्यौतिष । इन वेदाङ्गों की पृथक् पृथक् महत्ता तथा अपना-अपना निजी वैशिष्टय है। वेद का मुख्य प्रयोजन यज्ञ-याग का यथार्थ अनुष्ठान है। इसके लिए प्रवृत्त होने वाला अङ्ग ‘कल्प’ कहलाता है । कल्प का व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ है- ‘कल्प्यते समथ्यंते यागप्रयोगोऽत्र’ अर्थात् जिसमें यज्ञ के प्रयोगों का समर्थन या कल्पना की जाये। और भी देखें-
‘द्वे विद्ये वेदितव्ये इति ह स्म यद्ब्रह्मविदो वदन्ति परा चैवापरा च । तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्ववेदः शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं छन्दो ज्योतिषमिति । अथ परा यया तदक्षरमधिगम्यते ।’ (मुण्डकोप० १।१।४-५)
Additional information
Weight | 650 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 4 cm |
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