Patanjali Yogadarshanam (with Hindi explanation) Vol 1-2
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योग विद्या का शिक्षक वेद एवम् योग विद्या का आचार्य हो आज प्रायः योगविद्या का प्रचार चारों तरफ ज़ोर-शोर से है। विचार यह करना है कि कहीं तो नर-नारी पैसा दुगना करने वालों और कहीं सोना चाँदी दुगना करने वालों से ठगे जाते हैं। अतः सोने के भुलावे में हम पीतल घर में इकट्ठा न करें। श्रीकृष्ण महाराज ने वेद एवं योग की शिक्षा संदीपन ऋषि के आश्रम में सुदामा सखा के संग सीखी थी। और जब योग विद्या का उपदेश उन्होंने अर्जुन को गीता श्लोक ६/३२ में दिया तो अगले श्लोक में ही अर्जुन का यह कहना कितना उचित और कटु सत्य है कि हे श्रीकृष्ण महाराज “अयम् योगः त्वया प्रोक्यः” अर्थात् यह आपके द्वारा कही गई योग विद्या है। प्रत्यक्ष है कि श्रीकृष्ण महाराज स्वयं योगेश्वर हैं और योगेश्वर ही योग की शिक्षा दे सकते हैं, अन्य नहीं। यहाँ यजुर्वेद मन्त्र ४०/१० का भी अनायास ही ध्यान आता है। जिसमें ईश्वर का उपदेश है “इति शुश्रुम धीराणाम्” यह विद्या हमने मेधावी, विद्वान योगी जनों से सुनी है। अतः प्राणी को अविनाशी, परंपरागत वेद एवं योग विद्या को जानने वाले विद्वान से ही विद्या सुननी चाहिए। योग शास्त्र सूत्र १/१ की व्याख्या में व्यासमुनि ने चित्त की क्षिप्त, मूढ़, विक्षिप्त, एकाग्र एवं निरूद्ध, यह पाँच वृत्तियाँ कही हैं। प्रथम तीन वृत्तियाँ रजो एवं तमोगुणी अर्थात् विषय-विकारी, आलस्य, दरिद्रता एवं मोह वाली हैं जिसमें योग की शिक्षा नहीं दी जाती। एकाग्र वृत्ति में योग शिक्षा दी जाती है। वेदाध्ययन, यज्ञ आदि शुभ कर्मों से एकाग्र वृत्ति बनती है। यह आश्चर्य ही है कि आज प्रथम दिन से ही योग शिक्षा प्रारम्भ कर दी जाती है और यम, नियम को तो भूल ही गए। हम इस प्रकार अविनाशी संस्कृति पर कुठाराघात न करें। स्वामी रामस्वरूपजी योगाचार्य
Additional information
Weight | 1150 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 5 cm |
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