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Prabhu Milan Ki Rah

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Description

पूज्य श्री आनन्द स्वामी जी महाराज की कथाओं में कितना अमृत है, मनुष्य को ऊँचा उठाने, सच्चे सुख, सच्ची शान्ति और आध्या- त्मिकता की ओर ले-जाने की कितनी शक्ति है, यह अब बताने की आवश्यकता नहीं । १६४६ ई० के अन्त में उन्होंने संन्यास लिया – घर-बार, धन-सम्पत्ति, सगे-सम्बन्धी सबको त्याग दिया । फ़कीर बनकर जगह-जगह घूमने लगे । संन्यासी बनने से पूर्व उनका जीवन देश-सेवा और समाजसेवा का जीवन था। वर्ष में अधिकतर समय वे घर से बाहर रहते । जगह-जगह पहुँचकर भाषण करते, दुःखियों और पीड़ितों की सेवा करते, किन्तु संन्यासी बनने के बाद समाज को और मानव को आध्यात्मिक उन्नति और शान्ति की ओर ले जाना ही उनके जीवन का कार्य बन गया। अब वर्ष का अधिकतर समय नहीं, पूरा वर्ष ही वे मानव-मात्र की सेवा करते हैं और इस भेदभाव के बिना करते हैं कि वह किस मत, किस देश या किस जाति का है। उनके उपदेश सबके लिए हैं। उनकी कथाएँ सबके लिए हैं। उनका प्यार सबके लिए है। आशीर्वाद सबके लिए है।
गत कुछ वर्षों में वे पाँच बार अफ्रीका के विभिन्न देशों – केनिया, युगाण्डा, टाँगानीका, तनजानिया आदि में गए हैं, मॉरिशस में गए हैं। बर्मा, सिंगापुर, मलयेशिया, थाईलैंड, न्यूज़ीलैंड, आस्ट्रेलिया, हाँगकाँग और जापान में गए हैं। ब्रिटेन, आयरलैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, इटली, यूनान और मिस्र में भी पहुँचे हैं। भारत का कोई भाग ऐसा नहीं जहाँ वे कई-कई बार न पहुँचे हों और जहाँ उनके उपदेशों ने लोगों को वह सन्देश न दिया हो जिसके बिना मानव न तो सच्चे अर्थों में मानव बनता है, न उस सुख और शान्ति को प्राप्त करता है जिसके बिना दुनिया की प्रत्येक वस्तु व्यर्थ है ।

Additional information

Weight 221 g
Dimensions 18 × 12 × 1 cm

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