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प्राचीन भारत में प्रजातन्त्र का स्वरूप व आज का संसद् Prachin Bharat Mein Prajatantra ka Svarup evam Aaj ka Sansad

Original price was: ₹50.00.Current price is: ₹45.00.

  • प्राचीन भारतीय लोकतन्त्र की ऐतिहासिक एवं शास्त्रीय पुष्टि

  • आधुनिक संसद प्रणाली के साथ तुलनात्मक अध्ययन

  • सांस्कृतिक व राजनीतिक चेतना को प्रेरित करने वाली सामग्री

  • विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं नीति-अध्येताओं हेतु उपयोगी

  • राष्ट्र-विचार और शासन-दर्शन की गहरी समझ प्रदान करती है

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Description

मानव समाज में सदा सर्वत्र सज्जन लोग ही नहीं रहते। यहाँ दुर्जन भी रहते हैं। यह समय केवल सृष्टि का आदिकाल ही था, जब यहाँ सत्पुरूषों की ही बहुलता थी। सभी लोग कर्म के अनुसार जीवन जीते थे। समय की गति के साथ मानव के स्वभाव में भी परिवर्तन जान्म हुआ। लोगों ने लोभ के कारण असत्य भाषण आरम्भ किया। जैसे-जैसे संग्रह की प्रवृति बढ़ती गई, वैसे ही वैसे आपसी राग-द्वेष, लड़ाई-झगड़े बढ़ते गये, व्यक्ति धर्म से पतित होता गया। ऐसे लोगों की जब संख्या बढ़ती गई तो सामाजिक पाप के साथ दुराचार बढ़ता गया। सज्जन धर्मात्मा पुरूषों को वेद में आर्य कहा गया है तथा दुर्जन पापात्मा लोगों को असुर या दस्यु कहा गया है।
असुर लोगों को मान मर्यादा में चलाने के लिए राज व्यवस्था की आवश्यकता होती है इन राजकीय व्यवस्था में जब राजा की ही प्रधानता होती है, तो उसे राजतन्त्र कहते हैजब प्रजा अपने शासक का स्वयं चुनाव करती है, तो उसे प्रजातन्त्र कहते हैं। प्रजातन्त्र में प्रजा का समझदार, सदाचारी, धर्मात्मा होना आवश्यक है। यदि प्रजा स्वयं के सन्झदार नहीं होगी तो लोभ, लालच व अज्ञान के कारण वह अपने शासक का भी चुनाद सही नहीं कर सकती। वैसे ही यदि राजतन्त्र में राजा धर्मात्मा, सदाचारी, दूरदर्शी, होगा तो वह प्रजा को भी सही धर्म के रास्ते पर चलने को मजबूर करेगा। यदि राजा है स्वयं अज्ञानी, स्वार्थी, दुर्व्यसनी होगा तो वह पूरे देश को रसातल में ले जायेगा। पिछले 64-65 वर्षों से इस देश में ऐसा ही हुआ। दुराचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार उत्तरोत्तर कहते हैं चले गये क्योंकि कांग्रेस की सरकार में नेता लोग स्वयं इन बुराईयों में लिप्त को जब ये पाप अपनी चरम सीमा पर हैं। कहने को तो देश में प्रजातन्त्र है किन्तु नेताओं ने प्रजा को इतना पागल बना कर रखा है कि उसे अपने भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहा। आपस की फूट डालने के लिए जनता को एस.सी., एस.टी., एस.एस.टी. आदि सैकड़ों भागों में बाँटकर उन्हें आरक्षण का लालच देकर फंसाया। चारित्रिक पतन करने के लिए सिनेमा, टेलीविजन, फिल्मी एक्टर-एक्ट्रेस के अभद्र अश्लील नाच गान को आकाश में उछाला। शराब, मांस, अण्डे, गुटके आदि मादक द्रव्यों के प्रचार से जनता केन्दहोश बनाया। उन्हीं का पैसा लूट-लूटकर दिनों-दिन मंहगाई को बढ़ाते गये। ये स्व जनता की हितचिन्तक सरकार कदापि नहीं कर सकती। ये दुष्ट नेताओं के काम केनेहरु परिवार देशभक्त नहीं था, वह अंग्रेजों का भक्त था। उन्हें भारतीय संस्कृति कालेशमात्र भी ज्ञान नहीं रहा।

Additional information

Weight 204 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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