Chaudahvin Ka Chand
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हमारे देश में मुसलमानों के आक्रमण ७१२ ई० से होते रहे, परन्तु १०२६ ई० से पूर्व उनका भारत में शासन स्थापित नहीं हो पाया था। भारत में शासन स्थापना के बाद उन्होंने यहाँ की सभ्यता, संस्कृति एवं धर्म पर निरन्तर प्रहार किये। १९वीं शताब्दी में भारत के अहोभाग्य से महर्षि दयानन्द का आविर्भाव हुआ। महर्षि ने सत्य का प्रतिपादन करने के लिए सत्यार्थप्रकाश की रचना की। इसके १४वें समुल्लास में कुरान की आयतों के मुसलमान विद्वानों द्वारा किये गये अर्थों की समालोचना की। इससे रुष्ट होकर मुस्लिम विद्वानों ने समय-समय पर सत्यार्थप्रकाश के विरुद्ध कई पुस्तकें लिखीं, इनमें मौलवी सनाउल्ला खाँ की पुस्तक ‘हक प्रकाश’ भी शामिल है। इसमें महर्षि के दृष्टिकोण को न समझकर दुराग्रहों से ग्रसित होकर सत्यार्थप्रकाश पर अनर्गल आक्षेप किये गये। ३ उसी के जवाब में वैदिक विद्वान् श्री चमूपतिजी एम० ए० ने *चौदहवीं का चाँद’ नामक पुस्तक लिखी। इसमें मौलवी सनाउल्ला खाँ साहब के सभी आक्षेपों के उत्तर दिये और साथ-साथ यह भी दर्शाया कि सत्यार्थप्रकाश में जो भी लिखा गया है वह यथार्थ है। यह पुस्तक काफी समय से अनुपलब्ध थी। साथ ही इसमें अरबी-फारसी के बड़े बोझिल शब्द थे जो सामान्य व्यक्ति के लिए दुरूह थे। उन सबको प्रा० राजेन्द्रजी ‘जिज्ञासु’ ने सरल किया ताकि यह पुस्तक सर्वसाधारण को सुगम्य हो सके। इससे सर्वसाधरण लाभान्वित हो यही प्रकाशन का उद्देश्य है। – आर्यमुनि ‘वानप्रस्थी’
Additional information
| Weight | 300 g |
|---|---|
| Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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