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Presentation of Vedic Literature Gopathbrahmanbhashyam

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वैदिक वाङ्‌मय की परम्परा में अथर्ववेद के गोपथ ब्राह्मण का महत्त्वपूर्ण स्थान सर्वसम्मत है। जिस प्रकार कालक्रम से वैदिक ज्ञानधारा विलुप्त विच्छिन्न होती हुई आज भी अपने कुछ अवशेषों द्वारा अपने चिरजीवित होने का तथा देदीप्यमान अतीत का प्रमाण दे रही है, इसी रूप में गोपथ ब्राह्मण की इस समय उपलब्धि समझनी चाहिये । जब कि सहस्रशः दुर्लभ ग्रन्थ अपने नामावशेष के रूप में ही इस समय जीवित हैं तो गोपथ का मूल रूप में उपलब्ध होना सचमुच ही सौभाग्य की बात है, यद्यपि वर्त्तमान में उपलब्ध ऐतरेय शतपथादि ब्राह्मणों की तुलना में यह सर्वाधिक उपेक्षित ब्राह्मण ग्रन्थ है ऐसा निश्चित रूप से उसके बहुसंख्य भ्रष्टपाठों, मूल संस्करणों की न्यूनताओं एवं इसके किसी भी भाष्य की अनुपलब्धि को देखकर कहा जा सकता है। महाभाष्य में ‘नवधा अथर्वणः’ कहकर अथर्ववेद की नौ शाखायें थीं ऐसा प्रकट किया गया है। इन सभी शाखाओं के अपने-अपने ब्राह्मण रहे होंगे, ऐसी पूर्ण सम्भावना है पर अब तो अथर्व की दो शौनक एवं पैप्पलाद शाखायें ही प्राप्त हैं नौ शाखाओं के नौ ब्राह्मणों की तो बात ही क्या ? इस प्रकार अथर्ववेद जिसे ब्रह्मवेद भी कहते हैं, उसका इकलौता जीवित ब्राह्मण होने के कारण इसकी उपादेयता एवं सुरक्षणीयता को कौन अस्वीकार कर सकता है । यह अथर्ववेद का ब्राह्मण है. यह तथ्य इसके वर्णनों से भी प्रकट हो जाता है। इस ग्रन्थ के कई स्थानों पर अथर्व की उपयोगिता तथा महनीयता सिद्ध करने के लिये कई आख्यान दिये गये हैं । उनका सार यही है कि जो कार्य ऋक्, यजु, साम इन तीनों वेदों से सम्पन्न नहीं हो सका वह अथर्व ने कर दिखाया अतः यह परम उपादेय है, पुनरपि गोपथ ब्राह्मण के अन्तः साक्ष्य के आधार पर यह भी मानना होगा कि जिस शौनक शाखा वाला अथर्व आज उपलब्ध है उस शाखा का यह ब्राह्मण नहीं है। उपलब्ध गोपथ ब्राह्मण पैप्पलाद शाखा का है। पैप्पलाद शाखा का प्रथम मन्त्र ‘शन्नो देवीरभिष्टये’ से प्रारम्भहोता है किन्तु शौनक शाखा में ऐसा नहीं। गोपथ ब्राह्मण में “शन्नो देवीरभिष्टय इत्थेवमादि कृत्वा अथर्ववेदमधीयते” ऐसा कहा है इससे स्पष्ट पता चलता है कि यह पैप्पलाद शाखा वाले अथर्व का ही ब्राह्मण है। ज्ञानकाण्ड वाला होने के कारण विषय की ऋग्वेद में ही हो जाता है अतः प्राचीन ग्रन्थों में है। प्रस्तुत ब्राह्मण ग्रन्थ में भी कतिपय स्थलों में दृष्टि से अथर्ववेद का अन्तर्भाव प्रायः ‘त्रयो वेदाः’ ऐसा कहने की परिपाटी तीन वेद बताये हैं” किन्तु एक स्थल

Additional information

Weight 800 g
Dimensions 23 × 16 × 4 cm

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