Presentation of Vedic Literature Killing the country
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‘देश की हत्या’ १६४७ में जो देश-विभाजन हुआ, उसकी पृष्ठभूमि पर आधा-रित उपन्यास है। इस प्रकार भारतवर्ष में गांधी-युग की पृष्ठभूमि पर लिखे अपने उपन्यासों की श्रृंखला में यह अन्तिम कड़ी है। ‘स्वाधीनता के पथ पर’, ‘पथिक’, ‘स्वराज्य-दान’ और ‘विश्वासघात’ पहले ही पाठकों के सम्मुख आ चुके हैं। उसी क्रम में इस उपन्यास को लिखकर देश के इतिहास को इस युग के अन्त तक लिख दिया गया है।
इन उपन्यासों में उस युग की सम्पूर्ण घटनाओं को नहीं लिखा जा सका। फिर भी, जो-जो ऐतिहासिक तथ्य लिखे हैं, वे सब सत्य हैं। तत्कालीन इतिहास के साथ-साथ ही ये उपन्यास चलते हैं। उपन्यास विवेचनात्मक हैं और विवेचना अपनी है। कोई अन्य व्यक्ति इन्हीं ऐतिहासिक घटनाओं के अर्थ भिन्न ढंग से भी लगा सकता है। इन अर्थों का विश्लेषण पाठक स्वयं करने का यत्न करें, तो ठीक रहेगा।
इन सब उपन्यासों को क्रमानुसार पढ़ने से कुछ पाठकों को ऐसा भास हुआ है कि लेखक के विचार बदल गए हैं। इस कारण ‘स्वाधीनता के पथ पर’ के गांधीवाद का प्रशंसक ‘देश की हत्या’ में गांधीवाद का निन्दक हो गया प्रतीत होता है। किन्तु ऐसा नहीं है। लेखक ने इतिहास के तारतम्य को ज्यों-का-त्यों रखते हुए, उसके जनता पर प्रभाव को निष्पक्ष भाव से अंकित करते हुए और अपने मन पर उत्पन्न हुए भावों को भी लिखा है। यह यत्न किया गया है कि गांधीवाद के समर्थकों का दृष्टिकोण भी यथासम्भव रख दिया जाए। अतएव विचारों में विषमता भासित हो सकती है; वास्तव में ऐसा नहीं है।
Additional information
Weight | 330 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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