Rigveda Subhasitavali
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Description
ऋग्वेद का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
ऋग्वेद, प्राचीन भारतीय साहित्य का एक महत्वपूर्ण अभिलेख है, जिसे वैदिक काल के सबसे प्रारंभिक ग्रंथों में से एक माना जाता है। इस ग्रंथ का निर्माण लगभग 1500 से 1200 ईसा पूर्व के बीच हुआ, जो आर्य जनजातियों के सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का मूलस्त्रोत है। ऋग्वेद का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अध्ययन करना हमें उस समय की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने में मदद करता है।
ऋग्वेद, जिसमें 1028 मंत्र शामिल हैं, केवल धार्मिक पाठ नहीं है, बल्कि इसमें वैदिक सभ्यता की जटिलता और जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। ये मंत्र और श्लोक न केवल देवताओं की स्तुति करते हैं, बल्कि मानव जीवन की विभिन्न गतिविधियों, जैसे कृषि, युद्ध, और पारिवारिक संबंधों को भी प्रदर्शित करते हैं। यह ग्रंथ आर्य संस्कारों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का संचारक है, जो भारतीय संस्कृति की नींव रखता है।
ऋग्वेद की संरचना उसके भाषाशास्त्र की अद्भुतता को उजागर करती है। इसमें उपयोग की गई संस्कृत, उसके गहन अर्थों और व्याकरण की विशेषताओं के साथ-साथ मंत्रों की अलंकारिकता भी इसे एक अद्वितीय ग्रंथ बनाती है। ऋग्वेद के श्लोकों में जीवन के उद्देश्यों, अनुष्ठानों और धार्मिक आस्थाओं का वर्णन है, जो वैदिक समाज में अविस्मरणीय स्थान रखते हैं। इस प्रकार, ऋग्वेद न केवल भारतीय इतिहास का अभिन्न अंग है, बल्कि यह सांस्कृतिक पहचान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
डॉ. कपिल देव द्विवेदी का शोध और योगदान
डॉ. कपिल देव द्विवेदी, एक प्रमुख भारतीय विद्वान, ने ऋग्वेद की शिक्षाओं की गहराई को समझने के लिए विस्तृत शोध कार्य किया है। उनके विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य इस प्राचीन ग्रंथ के ज्ञान को आधुनिक संदर्भों में प्रस्तुत करना है। उन्होंने ऋग्वेद की शुभसिता के विभिन्न तत्वों की खोज की, जिससे इस धार्मिक ग्रंथ का नया दृष्टिकोण उजागर हुआ।
डॉ. द्विवेदी ने अपने शोध में विभिन्न पद्धतियों का उपयोग किया, जिसमें साहित्यिक, सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण शामिल हैं। उनके काम से यह स्पष्ट हुआ कि ऋग्वेद सिर्फ आध्यात्मिक ज्ञान का संग्रह नहीं है, बल्कि इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं की समृद्ध जानकारी और अनुभव भी निहित हैं। उनके द्वारा की गई खोजों ने इस ग्रंथ के शिक्षाओं को आधुनिक समय में प्रासंगिक बनाने का कार्य किया है।
उन्हें ऋग्वेद की संरचना, उसकी भाषा और उस दौरान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने में भी महारत हासिल है। इसके माध्यम से उन्होंने लेखन की शैली तथा शिक्षाओं का गहनतम विश्लेषण पेश किया। डॉ. द्विवेदी का मानना है कि ऋग्वेद की संदेश और नैतिक शिक्षाएँ आज के समाज में भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।
कई शोध पत्रों और लेखों के माध्यम से, डॉ. कपिल देव द्विवेदी ने भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रति अपने विचार व्यक्त किए हैं। उनके योगदान ने न केवल ऋग्वेद की अध्ययन पद्धतियों में सुधार किया है, बल्कि विशेषकर युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित भी किया है। उनके द्वारा पेश की गई विचारधारा और गहन विश्लेषण भारतीय ज्ञान और संस्कृतिक धरोहर के लिए अनमोल हैं।
Additional information
Weight | 500 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 2 cm |
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