Samajik paddhtiyan
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Description
चिरकाल से मैं यह अनुभव कर रहा था कि जनसमुदाय के लिए जिन सामाजिक कर्तव्यों का करना अनिवार्य है, उनके संगठितरूप में एकीकरण के लिए एक पद्धति बनाई जावे । जब कभी पुरोहित व विद्वान् को किसी के घर उसके बालक का जन्मदिन, वाग्दान, मिलनी अथवा उसके किसी व्यापारसम्बन्धी कृत्य या शोकावसर पर जाने का अवसर मिलता है, वहां वह केवल स्तुति, प्रार्थनोपासना, हवन आदि करके ही समाप्त कर देता है। उसके पास उस विशेष कृत्य के लिए कोई पद्धति नहीं होती। ये कठिनाइयां मेरे सामने भी आईं। वेद के ३० वर्ष के निरन्तर स्वाध्याय के पश्चात् वेदमंत्र मिल गये, मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही, जब वेदरूपी कामधेनु ने मेरी सब कामनायें पूर्ण कर दीं। अतएव ये सब पद्धतियां आर्य विद्वानों के विचारार्थ मैंने “आर्य” में प्रकाशित करवाईं । हर्ष का विषय है कि सभी पण्डितों ने इसकी सराहना की। यद्यपि मैं स्वयं गत २३ वर्षों से आर्य सिद्धांतों का गवेषणापूर्वक विचार करता रहा हूं और महर्षि दयानंद के ग्रंथों का भी स्वाध्याय किया है, तदपि कोई आर्य भाई हृदय में मिथ्या धारणा न कर लें कि ये पद्धतियां संस्कार-विधि में नहीं हैं, अतः मानने योग्य नहीं हैं। मेरा नम्र निवेदन यह है कि प्रथमतः तो इन पद्धतियों में वेदमंत्रों का ही विनियोग है जो कि हमारा मूलरूप से धर्मग्रंथ है। दूसरे, यद्यपि महर्षि
Additional information
Weight | 160 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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