Samasik Vedang Prakash Vol 5
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अथ सामासिक भूमिका
समास उसे कहते हैं कि जिसमें अनेक पदों को एक पद में जोड़ देना होता है। जब अनेक पद मिल के एक पद हो जाता है तब एक पद और एक स्वर होते हैं, पर समास विद्या के जाने बिना कुछ विदित नहीं हो सकता। इसलिये समास विद्या अवश्य जाननी चाहिये।
समास चार प्रकार का होता है-
एक अव्ययीभाव। दूसरा तत्पुरुष। तीसरा बहुव्रीहि और चौथा द्वन्द्व ॥ अव्ययीभाव में पूर्वपदार्थ, तत्पुरुष में उत्तरपदार्थ, बहुव्रीहि में अन्य पदार्थ और द्वन्द्व में उभय अर्थात् सब पदों के अर्थ प्रधान रहते हैं। जिसका अर्थ मुख्य हो वही प्रधान कहाता है।
अव्ययीभाव के दो भेद होते हैं-
एक पूर्वपदाव्यायीभाव। दूसरा उत्तरपदाव्ययीभाव ॥
तत्पुरुष नव प्रकार का होता है-
द्वितीया तत्पुरुष। तृतीया तत्पुरुष। चतुर्थी त०। पञ्चमी त० । षष्ठी त० । सप्तमी त०। द्विगु। नञ् और कर्मधारय ॥
बहुव्रीहि दो प्रकार का है-
एक तद्गुणसंविज्ञान। दूसरा अतद्गुणसंविज्ञान ॥
द्वन्द्व भी तीन प्रकार का होता है-
एक इतरेतरयोग। दूसरा समाहार और तीसरा एकशेष ॥ इस प्रकार से ४ समासों के १६ (सोलह) भेद समझने योग्य हैं। और इनमें से अव्ययीभाव, तत्पुरुष और बहुव्रीहि लुक् और अलुक् भेद से दो-दो प्रकार के होते हैं। इनके उदाहरण आगे आवेंगे।
इन समासों को यथार्थ जानने से सर्वत्र मिले हुए पद पदार्थ और वाक्यार्थ जानने में अति सुगमता होती है और समस्त पदयुक्त संस्कृत बोलना तथा दूसरे का कहा समझ भी सकता है। यह भी व्याकरण विद्या की अवयव विद्या है जैसी कि सन्धि विषय और नामिक विद्या लिख आये।
Additional information
Weight | 197 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 1 cm |
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