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Yajurved Bhashya Vol 1-4 Sanskrit & Hindi

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Description

यजुर्वेद परिचय
यजुर्वेद, हिंदू धर्म के चार वेदों में से एक है, जो विशेष रूप से यज्ञों की विधियों और धार्मिक क्रियाओं में मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह वेद यज्ञात्मक अनुष्ठानों में आवश्यक मंत्रों और प्रक्रियाओं की पूर्ण व्याख्या प्रदान करता है, जिससे इसका महत्व धार्मिक अनुष्ठानों में अत्यधिक बढ़ जाता है। यजुर्वेद की संरचना में समाहित विभिन्न ग्रंथों, जो मुख्यत: सामिधा और ब्राह्मणों के रूप में प्रस्तुत होते हैं, सभी धार्मिक गतिविधियों के लिए आवश्यक औपचारिकताओं को विस्तृत करते हैं।

यजुर्वेद की विशेषताओं में इसकी भाषा, व्याकरण और ध्वन्यात्मकता शामिल है, जो इसे अन्य वेदों से अलग करती है। यह ग्रंथ विशेष रूप से संस्कृत में लिखा गया है और इसकी भाषा में अनुष्ठानिक तालमेल की गुणवत्ता उसे अद्वितीय बनाती है। यजुर्वेद का अध्ययन न केवल धार्मिक संदर्भों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भी गहरा सामग्री प्रदान करता है। इसके माध्यम से विद्या, नैतिकता एवं संस्कृति का समन्वय दर्शाया गया है, जो प्राचीन समय से लेकर आज तक की मानव सभ्यता को प्रभावित करता है।

इतिहास में यजुर्वेद का स्थान श्रवण परंपरा के माध्यम से अद्वितीय रहा है, जहां यह ग्रंथ शास्त्रज्ञों, ब्राह्मणों एवं अन्य विद्वानों द्वारा स्मृति में रखा गया था। इसका संचरण और समर्पण संस्कृत भाषा के विकास में भी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिससे यजुर्वेद का अस्तित्व सदियों से अब तक बनी हुई है। इस प्रकार, यजुर्वेद न केवल धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि यह मानवता की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक अभिन्न हिस्सा है।

यजुर्वेद भाष्य का अर्थ और महत्वपूर्ण पाठ

यजुर्वेद एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक ग्रंथ है, जो विशेष रूप से यज्ञों और अनुष्ठानों से संबंधित है। इस ग्रंथ में विभिन्न मन्त्रों का संग्रह है, जो यज्ञों की विधियों और उनके अर्थों को स्पष्ट करते हैं। यजुर्वेद भाष्य इस ग्रंथ की गहन व्याख्या करता है, जिसमें मन्त्रों और अर्चना की प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन मन्त्रों का उपयोग यज्ञ के दौरान किया जाता है, जिससे साधना का उद्देश्य सिद्ध होता है।

प्रमुख पाठों में से एक “ॐ” का मन्त्र है, जिसे यजुर्वेद के आरम्भ में उच्चारित किया जाता है। यह मन्त्र ब्रह्म के प्रतीक के रूप में कार्य करता है और यज्ञ के सभी अनुष्ठानों की नींव है। इसके अलावा, यजुर्वेद में विभिन्न यज्ञों की विशेष विधियाँ जैसे कि अग्निहोत्र, सोमयाग और अश्वमेध यज्ञ का भी विस्तृत वर्णन है। प्रत्येक यज्ञ का संकल्प और उसकी प्रक्रिया महत्वपूर्ण है, और यजुर्वेद के मन्त्र इन अनुष्ठानों की सफलता के लिए आवश्यक होते हैं।

यजुर्वेद की गहराई में जाना आवश्यक है ताकि हम इसकी वास्तविकता को समझ सकें। विभिन्न मन्त्रों की व्याख्या करते समय, यह स्पष्ट होता है कि ये केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि ये जीवन के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए, “दिव्य दृष्टि” का मन्त्र आत्मा की उन्नति का प्रतीक है। अनुष्ठान विधियाँ केवल बाहरी क्रियाएँ नहीं हैं, बल्कि ये मानसिक और आत्मिक शुद्धि की ओर भी इशारा करती हैं।

इस प्रकार, यजुर्वेद भाष्य न केवल यज्ञ की विधियों का वर्णन करता है, बल्कि यह उन गहरे अर्थों की भी व्याख्या करता है, जो हमारे जीवन और साधना को निर्देशित करते हैं। इसके अध्ययन से साधक को अपनी साधना में गहराई और समझ प्राप्त होती है, जो कि आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

यजुर्वेद भाष्य: भाग 1 की विशेषताएँ

यजुर्वेद भाष्य का पहला भाग एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें वेद के अद्वितीय सिद्धांतों और संरचनाओं का विस्तार से विवरण दिया गया है। यजुर्वेद का मुख्य उद्देश्य यज्ञ और अनुष्ठानों से संबंधित विधाओं का अभ्यास और उनके पीछे के धार्मिक और दार्शनिक तर्कों को उजागर करना है। इस भाग में, श्लोकों की क्रमबद्धता को विशेष महत्व दिया गया है, जो इसकी अध्ययन और समझ में सहायक होती है।

यजुर्वेद के पहले भाग में शामिल श्लोकों का व्यवस्थित क्रम न केवल विचारधारा को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार विभिन्न अनुष्ठान और उनके उपायों का समयबद्ध उपयोग किया जा सकता है। प्रत्येक श्लोक का अपने स्थान पर एक विशेष अर्थ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यजुर्वेद केवल अनुष्ठान का संग्रह नहीं, बल्कि एक संपूर्ण विद्या है। यह विद्या साधक को अपने जीवन में आराधना और साधना के माध्यम से अध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करती है।

भाष्य के अनुवाद का मुद्दा भी इस भाग की विशेषताओं में महत्वपूर्ण है। कई स्थलों पर, सटीक अनुवाद करना चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि संस्कृत की विशेष ध्वनियाँ और शब्दार्थ स्पष्टता को प्रभावित कर सकते हैं। यजुर्वेद भाष्य के विभिन्न अनुवादों में भिन्नताएँ हो सकती हैं, जो पाठक को विचारशीलता की ओर प्रेरित करती हैं। यहां, लेखक ने अथर्ववेद और ऋग्वेद जैसे अन्य वेदों के संदर्भों का उपयोग करके विद्वेषिता को कम करने का प्रयास किया है। इस प्रकार, यजुर्वेद भाष्य का पहला भाग एक समृद्ध और गहन अध्ययन के लिए आधार प्रदान करता है।

यजुर्वेद भाष्य: भाग 2 से 4 तक का विकास

यजुर्वेद, हिंदू धार्मिक साहित्य में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जो यज्ञों और अनुष्ठानों से संबंधित ज्ञान प्रदान करता है। यजुर्वेद भाष्य का क्रमिक विकास भाग 2 से लेकर भाग 4 तक मुख्य विषयों और उनके संबंधित समय में परिवर्तनों को दर्शाता है। यजुर्वेद भाष्य के दूसरे से चौथे भाग में अनेक विषयों की विस्तृत चर्चा की गई है, जिसमें अद्वितीय अनुसंधान और चिंतन प्रक्रियाओं का समावेश है।

भाग 2 में, यजुर्वेद के मंत्रों का महत्वपूर्ण विश्लेषण किया गया है। यहाँ पर यज्ञ संबंधी विभिन्न अनुष्ठानों का वर्णन है और यह बताया गया है कि किस प्रकार इन अनुष्ठानों का प्रभाव व्यक्तियों एवं समाज पर पड़ता है। इस भाग में यज्ञ की विभिन्न विविधताओं और उनके अनुप्रयोगों का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। यही नहीं, इस भाग में मंत्रों की प्रकृति और उनका अर्थ भी समझाया गया है, जिससे पाठक को यजुर्वेद की सूक्ष्मता का अभिज्ञान होता है।

भाग 3 में, यजुर्वेद भाष्य को सरल और स्पष्ट भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे विस्तृत अध्ययन संभव हो सके। इस भाग के विकास में विभिन्न विचारकों और विद्वानों की रचनाओं का योगदान शामिल है। इसके परिणामस्वरूप, यहाँ पर यजुर्वेद के प्रमुख सिद्धांतों का विवरण दिया गया है, जो स्थायी मूल्य और सामाजिक व्यवहार पर प्रभाव डालते हैं।

भाग 4 में, यजुर्वेद का समकालीन संदर्भ में महत्व व्यक्त किया गया है। यहाँ पर आधुनिक युग में यजुर्वेद के प्रासंगिकता और अध्ययन की प्रक्रिया पर चर्चा की गई है। यह भाग यजुर्वेद की जीवंतता को दर्शाता है, जो समय के साथ विकसित होता रहा है। ऐसे में यजुर्वेद भाष्य का अध्ययन न केवल पुरातन ज्ञान की पुनरावृत्ति है, बल्कि यह आधुनिक विचारों के साथ जोड़ने का एक माध्यम भी है।

यजुर्वेद का आधुनिक महत्व

यजुर्वेद, जिसे वेदों में से एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, का आज के समय में विशेष महत्व है। यह न केवल धार्मिक शिक्षाओं और अनुष्ठानों का संकलन है, बल्कि यह नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहलुओं पर भी गहन विचार प्रस्तुत करता है। आधुनिक समाज में यजुर्वेद के अध्ययन से हमें जीवन के अनेक आयामों को समझने और उनका मूल्यांकन करने का अवसर मिलता है। इसका ज्ञान हमें हमारे दिन-प्रतिदिन के निर्णयों में नैतिकता और धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।

आज के उथल-पुथल भरे युग में जब मनुष्य भौतिकवादी दृष्टिकोण की ओर अग्रसर हो रहे हैं, यजुर्वेद हमें ध्यान और साधना के माध्यम से आत्म-प्रकाशित करने की प्रेरणा देता है। इसके सिद्धांत व्यक्ति के भीतर अंतर्निहित आत्मा के महत्व पर जोर देते हैं, जो कि व्यस्त जीवन में खो गया है। इसमें व्यक्त विचारों और मन्त्रों का प्रदर्शन इस संदर्भ में सहायक है कि कैसे एक व्यक्ति आत्म-चिंतन कर सकता है और अपने जीवन में संतुलन स्थापित कर सकता है।

यजुर्वेद का ज्ञान केवल व्यक्तिगत जीवन में नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन में भी महत्वपूर्ण है। यह हमें सहिष्णुता, परस्पर सम्मान और सहकारिता जैसे मूल्यों को अपनाने की दिशा में प्रेरित करता है। आज के सामाजिक मुद्दों जैसे पर्यावरणीय समस्याओं और सामाजिक भेदभाव को देखते हुए यजुर्वेद की शिक्षाएँ हमारे जीवन में सामंजस्य और एकता लाने में सहायक हो सकती हैं। धार्मिक विविधता के इस समय में, यजुर्वेद में निहित सार्वभौमिक गुण हमें एकात्मता की ओर अग्रसर कर सकते हैं, जो कि मानवता के लिए आवश्यक है।

इस प्रकार, यजुर्वेद का अध्ययन केवल धार्मिक अनुशासन नहीं है, बल्कि यह एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो आज की दुनिया में उपयोगी और प्रेरक सिद्ध हो रहा है। इसके सिद्धांतों और शिक्षाओं का अनुप्रयोग विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक परिस्थितियों में अनुभव किया जा सकता है, जिससे स्पष्ट होता है कि यजुर्वेद का योगदान आज भी अत्यंत प्रासंगिक है।

Additional information

Weight 3000 g
Dimensions 25 × 15 × 8 cm

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