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Sanskrit Sahitya ka Shamikshatmak Itihas

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Description

संस्कृत साहित्य के विकास की पृष्ठभूमि

संस्कृत साहित्य का विकास प्राचीन भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवेश से गहराई से जुड़ा हुआ है। संस्कृत भाषा को न केवल एक भाषाई माध्यम के रूप में समझा जाना चाहिए, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और विचारधारा का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। वेद, उपनिषद, महाभारत और रामायण जैसे प्राचीन ग्रंथ इस साहित्य की नींव रखते हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं पर मार्गदर्शन करते हैं।

प्रारंभ में, संस्कृत साहित्य मुख्य रूप से धार्मिक ग्रंथों तक सीमित था, जिसमें अनुष्ठान, दर्शन और देवताओं की महिमा का वर्णन शामिल था। वैदिक साहित्य ने इस प्रक्रिया को प्रारंभ किया, जहां ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथरववेद जैसे ग्रंथों में मंत्रों और गायत्री मंत्र की रचना हुई थी। ये ग्रंथ जीवन का गहन अध्ययन करते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करते हैं।

समय के साथ, संस्कृत साहित्य ने विविध रूपों को अपनाया। नाटक और कविता जैसे साहित्यिक शैलियों ने महाकाव्य ग्रंथों के माध्यम से विशेष महत्व प्राप्त किया। कालिदास, भास, और हरिषेन्द्र जैसे साहित्यकारों ने अपने नाटकों और कविता के माध्यम से मानवीय भावनाओं और सामाजिक मुद्दों को उजागर किया। इसके अलावा, प्राचीन उपन्यास जैसे बौद्ध साहित्यों में भी इस साहित्य का योगदान महत्वपूर्ण रहा है, जहां उन्होंने नए विचारों और दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया।

संस्कृत साहित्य का विकास इस बात का परिचायक है कि कैसे एक भाषा और उसकी साहित्यिक रचनाएँ समाज के सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं से प्रभावित होती हैं। इस प्रकार, यह आवश्यक है कि हम संस्कृत साहित्य के ऐतिहासिक समृद्धि और विविधता को समझें, जो भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों को उजागर करती है।

डॉ. कपिल देव द्विवेदी के योगदान

डॉ. कपिल देव द्विवेदी, आधुनिक संस्कृत साहित्य के एक प्रमुख विचारक और समीक्षक हैं, जिनका योगदान इस क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने न केवल संस्कृत साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर गहन शोध किया है, बल्कि अपनी साहित्यिक दृष्टि और आलोचनात्मक सूझबूझ के माध्यम से इसे नई दिशा भी प्रदान की है। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘संस्कृत साहित्य की आधुनिक प्रवृत्तियाँ’ और ‘भारतीय कविता का सौन्दर्यशास्त्र’ जैसे ग्रंथ शामिल हैं, जो संस्कृत साहित्य पर उनके गहन विचारों को प्रस्तुत करते हैं।

द्विवेदी जी ने अपनी शिक्षण शैली में सिद्धांत और व्यावहारिकता का अद्भुत संतुलन स्थापित किया है। वे अपने छात्रों को न केवल संस्कृत साहित्य की बारीकियों से अवगत कराते हैं, बल्कि उन्हें इस साहित्य के आलोचनात्मक अध्ययन के लिए प्रेरित भी करते हैं। उनका यह दृष्टिकोण छात्रों में साहित्य के प्रति गहरी रुचि उत्पन्न करता है। डॉ. द्विवेदी का विचार है कि संस्कृत साहित्य को विषयानुसार संरचित करना आवश्यक है ताकि उसकी गहराई और जटिलताओं को समझा जा सके।

उनकी आलोचनात्मक सोच तीन मुख्य साहित्यिक विधाओं पर केंद्रित है: कविता, नाटक, और उपन्यास। इन विधाओं में डॉ. द्विवेदी का योगदान न केवल सिद्धांतों की ओर उन्मुख है, बल्कि उन्होंने इन विधाओं को वर्तमान संदर्भ में पुनर्परिभाषित करने का प्रयास किया है। उनके शोध कार्य और लेखन ने संस्कृत साहित्य को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ आगे बढ़ा सकती हैं। उनका मानना है कि केवल पारंपरिक दृष्टिकोण ही नहीं, बल्कि समकालीन संदर्भ में भी संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन आवश्यक है।

Additional information

Weight 300 g
Dimensions 18 × 12 × 3 cm

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