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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रथम भाग + द्वितीय भाग History of Sanskrit Grammatical Science Volume I + Volume II

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यह द्विखण्डीय ग्रंथ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र की उत्पत्ति, विकास एवं उत्कर्ष का विस्तृत ऐतिहासिक विवेचन प्रस्तुत करता है।
पाणिनीय परम्परा, प्राचीन व्याकरणाचार्यों, विभिन्न शैलों व दार्शनिक प्रभावों का तथ्यपरक व प्रमाणिक अध्ययन करते हुए यह ग्रंथ व्याकरण-शास्त्र के विचार-क्रम और बौद्धिक यात्रा को स्पष्ट करता है।
व्याकरण, भाषा-विज्ञान व वेद-अध्ययन के शोधार्थियों के लिए यह एक अपरिहार्य संदर्भ-ग्रंथ है।

English :
A comprehensive two-volume historical study of Sanskrit grammar — tracing its origins, evolution, major schools, and renowned scholars.
It explains the Paninian tradition, linguistic philosophies, and the scholarly contributions that shaped Sanskrit grammar throughout centuries.
An essential reference for students, researchers, and teachers exploring Vyakarana and Vedic linguistics.

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Description

पं० युधिष्ठिरजी मीमांसक का यह ग्रन्थरत्न विद्वानों के सम्मुख उपस्थित है। कितने वर्ष कितने मास और कितने दिन श्री पण्डितजी को इसके लिये दत्तचित्त होकर देने पड़े, इसे मैं जानता हूं। इस काल के महान् विघ्न भी मेरी आँखों से ओझल नहीं हैं।

भारतवर्ष में अंग्रेजों ने अपने ढङ्ग के अनेक विश्वविद्यालय स्थापित किए। उनमें उन्होंने अपने ढङ्ग के अध्यापक और महोपाध्याय रक्खे। उन्हें ग्रार्थिक कठिनाइयों से मुक्त करके अंग्रेजों ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। भारत अब स्वतन्त्र है, पर भारत के विश्वविद्यालयों के प्रभूत- वेतन भोगी महोपाध्याय scientific विद्या-सम्बन्धी और critical तर्कयुक्त लेखों के नाम पर महा अनृत और अविद्या-युक्त बातें ही लिखते और पढ़ाते जा रहे हैं ।

ऐसे काल में अनेक प्रार्थिक और दूसरी कठिनाइयों को सहन करते हुए जब एक महाज्ञानवान् ब्राह्मण सत्य की पताका को उत्तोलित करता है, और विद्या-विषयक एक वज्रग्रन्थ प्रस्तुत करके नामधारी विद्वानों के अनृतवादों का निराकरण करता है, तो हमारी आत्मा प्रसन्नता की परा- काष्ठा का अनुभव करती है । भारत शीघ्र जागेगा, और विरोधियों के कुग्रन्थों के खण्डन में प्रवृत्त होगा ।

ऐसा प्रयास मीमांसकजी का है। श्री ब्रह्मा, वायु, इन्द्र, भरद्वाज आदि महायोगियों तथा ऋषियों के शतशः आशीः उनके लिये हैं । भगवान् उन्हें बल दें कि विद्या के क्षेत्र में वे अधिकाधिक सेवा कर सकें ।

मैं इस महान तप में उन को सफल समझता हूं। इस ग्रन्थ से भारत की एक बड़ी त्रुटि दूर हुई है। जो काम राजवर्ग के बड़े-बड़े लोग नहीं कर रहे हैं, वह काम यह ग्रन्थ करेगा । इससे भारत का शिर ऊंचा होगा ।

Additional information

Weight 1950 g
Dimensions 22 × 14 × 10 cm

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