Sarvashrouteshti-Prakriti
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Description
वैदिक सम्प्रदायानुसार जितना कर्मकाण्ड है, वह सब श्रौत स्मार्त्त दो भागों में विभक्त है। स्मार्त्त कर्मों का वर्णन गृह्यसूत्रों में किया है। इनके अनुसार विवाह यज्ञोपवीतादि की पद्धतियाँ बनी हैं। वर्तमान समय में तन्त्रादि का कृत्य भी जिन में मिला है, उसको भी स्मार्त्त कर्मों में सम्मिलित माना जाता है। उसके सदसत् होने के विषय में यहाँ कुछ हमें वक्तव्य नहीं है। यहाँ केवल श्रौत विषय पर विचार है। इस श्रौत कर्म का विशेष व्याख्यान तो आपस्तम्बीय यज्ञपरिभाषा सूत्र, कातीय श्रौतसूत्र का प्रथमाध्याय तथा आश्वलायन सूत्रादि के परिभाषा प्रकरण और श्रौतपदार्थनिर्वचनादि पुस्तकों में है। उसको पूरा-पूरा प्रमाणों सहित यहाँ लिखा जाए तो मूल पुस्तक से भी कई गुणा अधिक प्रस्तावना हो जाए। इसलिए उन्हीं पुस्तकों का सारांश लेकर संक्षेपाशय हम यहाँ दिखाते हैं ॥
श्रुति नाम वेद और ब्राह्मणों में जो कहे गये वे श्रौत कर्म तथा उन्हीं वेद और ब्राह्मणों का आशय लेकर बने श्रौतसूत्र कहलाते हैं। यह मौत कर्म यज्ञ और होम दो शब्दों से प्रसिद्ध है। तिष्ठद्धोमा वषट्कार- प्रदाना याज्यापुरोनुवाक्यावन्तो यजतयः (का० १.२.६) जहाँ होम । पूर्व प्रैष, अनुवाक्या, आश्रुत, प्रत्याश्रुत, प्रैष तदनन्तर याज्या का उच्चारण पश्चात् यजमान का त्याग करना और कर्म के समय अध्वर्यु खड़े होकर होम करे उन कर्मों का नाम यज्ञ, याग, इष्टि, इज्या आदि गज धातुज जानना चाहिए और उपविष्टहोमाः स्वाहाकारप्रदाना गृहोतयः (का० १.२.७) जहाँ स्वाहाकार बोलने के साथ बैठकर होम किया जाए, उनको हवन, होत्र, होम आदि हु-धातुज जानो।
श्रौत कर्मों में याग प्रधान है, किन्तु हवन प्रधान नहीं है। पात्रा- सादनादि सब काम प्रधानयाग के साधन अङ्ग हैं। अङ्गों से ही अङ्गी पूर्ण साङ्गोपाङ्ग होता है। दर्शपौर्णमास अन्य सब इष्टियों की प्रकृति है।
Additional information
Weight | 200 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 1 cm |
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