सत्यार्थ-प्रकाश (पूर्वार्ध + उत्तरार्ध – कॉम्बो सेट) | Satyarth Prakash (Part 1 + Part 2 – Combo Set) | Satyārtha-Prakāśa Combo Pack
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इस शोध संस्करण की कंटकाकीर्ण और श्रमसाध्य यात्रासात साल के सतत स्वाध्याय-चिन्तन और शोध-श्रम के फलस्वरूप ‘सत्यार्थप्रकाश’ का जो आज तक का सबसे शुद्ध परिष्कृत, शोध-संस्करण निर्मित हो सका है, वह पाठकों के हाथों में है। पाठकों से एक निवेदन अवश्य है कि वे इस संस्करण के विषय में कुछ भी धारणा बनाने से पूर्व’ सत्यार्थप्रकाश- मीमांसा’ नामक समीक्षाभाग अवश्य और ध्यान से पढ़ लें। उसके बाद ही इस शोधकार्य का मूल्यांकन करें, और वह भी समग्रता के साथ करें, एकांगी रूप से कुछ ही बातों को लेकर नहीं। किसी के कुछ भी कह देने भर से, अथवा किसी पूर्वाग्रह के कारण कोई धारणा न बनायें, क्योंकि सत्यार्थप्रकाश और ऋषि-हित में इस शोधकार्य में महान् श्रम हुआ है। गत १२८ वर्षों में सम्पादित प्रमुख पच्चीसों संस्करणों के प्रमुख पाठान्तरों को उद्धृत करना, उनके संशोधनों की परीक्षा करना, विभिन्न समीक्षाओं का मूल्यांकन और फिर पाठ-निर्धारण करना अत्यन्त श्रम एवं समय-साध्य कार्य था।
कुछ निरे भावुक, पूर्वाग्रही, सत्यार्थप्रकाश के पाठालोचनविषयक ज्ञान से रहित, अदूरदशीं और पक्ष-विशेष के लोगों को, उनकी पूर्वनिर्मित धारणा के कारण, प्रारम्भ में यह कार्य’ अप्रिय’ प्रतीत हो सकता है। मेरा निवेदन है कि वे इस शोध कार्य को महर्षि द्वारा उधृत इस वचन के परिप्रेक्ष्य में स्वीकार कर लें और विश्वास करें कि-
“यत्तदग्रे विषमिव परिणामे-अमृतोपमम्” (गीता १८,३७, सत्यार्थप्रकाश पृष्ठ ११)
अर्थात् ‘शोध श्रमजन्य यह कार्य प्रारम्भ में विष के समान अर्थात् अप्रिय भले ही प्रतीत हो, किन्तु परिणाम में अमृत के समान कल्याण-साधक सिद्ध होगा।’ यतो हि इस शोधकार्य का उद्देश्य ही सत्यार्थप्रकाश-हित और ऋषिः हित है।
प्रश्न उठता है कि इस शोध संस्करण की आवश्यकता क्यों हुई और अन्य अनेक संस्करणों के उपलब्ध रहते इसमें कौन-सी नयी विशेषता है? उत्तर में कहा जा सकता है कि इस शोध संस्करण का पाठ-निर्धारण मूल-हस्तलेख, मुद्रणहस्तलेख, प्रथम संस्करण (१८७५), द्वितीय संस्करण (१८८४), परोपकारिणी सभा द्वारा प्रकाशित अनेक द्वितीय संस्करण और मूलप्रति संस्करण, द्वितीय संस्करण (वर्तमान), स्वामी वेदानन्द जी सरस्वती, पं० भगवद्दत्त जी, श्री जगदेवसिंह जी सिद्धान्ती, पं० युधिष्ठिर जी मीमांसक, स्वामी विद्यानन्द जी सरस्वती, स्वामी जगदीश्वरानन्द जी सरस्वती, उदयपुर आदि संस्करणों और प्रमुख समीक्षक-विद्वानों के पाठों के तुलनात्मक पाठालोचन-पूर्वक कुछ साहित्यिक मानदण्डों के आधार पर और शोध-प्रविधि से करने का प्रयत्न प्रथम बार किया गया है। अति सामान्य और पुनः पुनः आये पाठों को छोड़कर प्रायः सभी पाठों पर टिप्पणी दी गई है जिसमें विभिन्न संस्करणों में परिवर्तित व स्वीकृत पाठों का विवरण प्रदर्शित करते हुए समीक्षापूर्वक पाठ निर्धारण करने का विनम्र तटस्थ प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त गूढ़, ऐतिहासिक व्याख्या-सापेक्ष और शंका-सापेक्ष स्थलों को स्पष्ट एवं संपुष्ट करने के लिए भाष्य-शैली में समाधानोपयोगी सामग्री भी दी गई है।
सत्यार्थप्रकाश के अब तक के इतिहास में, इस संस्करण में पहली बार एक महत्त्वपूर्ण जानकारी पाठकों को उपलब्ध कराई जा रही है। वह यह है कि मूलप्रति और मुद्रणप्रति में जो पाठ महर्षि दयानन्द ने अपने हस्तलेख में लिखे या संशोधित-परिवर्धित किये हैं उनके नीचे पृथक् पृथक् रेखाएं अंकित करके उनकी जानकारी दी गई है। पाठक देखते ही जान जायेंगे कि अमुक पाठ किस हस्तलिखित प्रति में ऋषि ने अपने हाथ से लिखा है। उनमें से नीचे सीधी रेखा से अंकित पाठ मूलप्रति में हैं और वक्ररेखांकित पाठ मुद्रणप्रति में हैं। टिप्पणी में भी इसकी जानकारी दी है।
इस संस्करण का एक अन्य वैशिष्ट्य यह है कि यह ऋषि द्वारा सम्पूर्ण अथवा आंशिक रूप में निरीक्षित और परम्परा से प्रामाणिक मानी जाने वाली तीन प्रतियों- मूलप्रति, मुद्रणप्रति, द्वितीय संस्करण (१८८४) पर मुख्यतः आधारित है। ऋषिप्रोक्त मूलप्रति के शुद्ध पाठ को प्राथमिक सम्मान और महत्त्व देते हुए जिस प्रति में अर्थ वैशिष्ट्य युक्त और ऋषि-गौरव वर्धक जो शुद्ध पाठ प्राप्त है, उसको ग्रहण किया गया है।
Description
‘सत्यार्थ-प्रकाश’ आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत महान वैचारिक ग्रंथ है, जिसमें सत्य, धर्म, ईश्वर, वेद, समाज-सुधार, शिक्षा, राष्ट्रोन्नति, धार्मिक ग्रंथों का परीक्षण तथा जीवन-दर्शन का तार्किक एवं वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत है।
📌 इस कॉम्बो सेट में —
✅ पूर्वार्ध — वेद, ईश्वरवाद, पूजा, सत्य-ज्ञान तथा सामाजिक सुधार
✅ उत्तरार्ध — विभिन्न मतों का शास्त्रसम्मत परीक्षण एवं सत्य का उद्घाटन
यह ग्रंथ पाठकों को सही-गलत में विवेक विकसित कर सत्य-मार्ग पर चलने का साहस देता है।
यह केवल दार्शनिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि व्यक्ति और समाज—दोनों के उत्थान का मार्गदर्शक भी है।
English Summary:
This combo includes both volumes of Maharshi Dayananda Saraswati’s revolutionary and reformative masterpiece, explaining Vedic philosophy, truth, God, morality, logical analysis of belief systems, and guidance for a just & enlightened society.
Additional information
| Weight | 3830 g |
|---|---|
| Dimensions | 29 × 23 × 9 cm |
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