Satyarth Prakash 41 Sansakaran Paperback
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परोपकारिणी सभा अजमेर में महर्षि दयानन्द सरस्वती के प्रायः सभी ग्रन्थों की मूल प्रतियाँ हैं। इनमें से सत्यार्थप्रकाश की दो प्रतियाँ हैं। इनके नाम ‘मूलप्रति’ तथा ‘मुद्रणप्रति’ रक्खे हुए हैं। मूलप्रति से मुद्रणप्रति तैयार की गई थी। मुद्रणप्रति (प्रेस कॉपी) के आधार पर सन् १८८४ ईसवी में सत्यार्थप्रकाश का द्वितीय संस्करण छपा था। इतने लम्बे अन्तराल में विभिन्न संशोधकों के हाथों इतने संशोधन, परिवर्तन तथा परिवर्द्धन हो गए कि मूलपाठ का निश्चय करना कठिन होने लग गया था। मूलप्रति से मुद्रणप्रति लिखनेवाले महर्षि के लेखक तथा प्रतिलिपिकर्त्ता ने सर्वप्रथम यह फेर बदल की थी। महर्षि अन्य लोकोपकारक कार्यों में व्यस्त रहने तथा लेखक पर विश्वास करने से मुद्रणप्रति को मूलप्रति से अक्षरशः नहीं मिला सके। परिणामतः लेखक ने प्रतिलिपि करते समय अनेक स्थलों पर मूल पंक्तियाँ छोड़कर उनके आशय के आधार पर अपने शब्दों में अपना भाव अभिव्यक्त कर दिया। अनेक स्थानों पर भूल से भी पंक्तियाँ छूट गई तथा अनेक पंक्तियाँ दुबारा भी लिखी गई। अनेकत्र मूल शब्द के स्थान पर पर्यायवाची शब्द भी लिख दिये थे। मुंशी समर्थदान ने भी पुनरावृत्ति समझकर १३वें- १४वें समुल्लास की अनेक आयतें और समीक्षायें काट दीं। यह सब करना महर्षि दयानन्द सरस्वती के अभिप्राय से विरुद्ध होता चला गया। परोपकारिणी सभा से अतिरिक्त अन्य प्रकाशकों के पास पहले यह सुविधा भी नहीं थी कि वे मूलप्रति से मिलान करके महर्षि के सभी ग्रन्थों का शुद्धतम पाठ प्रकाशित कर सकें। परोपकारिणी सभा की ओर से भी कभी-कभी एक मुद्रणप्रति (प्रेस कॉपी) से ही मिलान करके प्रकाशन किया जाता रहा। मूलप्रति की ओर विशेष दृष्टिपात नहीं किया गया, किन्तु किसी-किसी ने कहीं-कहीं पाठ देखकर सामान्य परिवर्तन किये हैं और न कभी यह सन्देह ही हुआ कि दोनों प्रतियों में कोई मूलभूत पर्याप्त अन्तर भी हो सकता है।
Additional information
Weight | 500 g |
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Dimensions | 23 × 15 × 3 cm |
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