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Shabar swami-Virachit Jaiminiya-Mimamsa-Bhashyam Vol 1-7

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Description

वैदिकं वाङ्मय तथा उपाङ्गभूत षट्दर्शनों में पूर्वमीमांसाशास्त्र का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इस शास्त्र में वेद, उसकी व्याख्या ब्राह्मण ग्रन्थों और सूत्र- ग्रन्थों में जो बबन याज्ञिक प्रक्रिया की दृष्टि से अस्पष्ट एवं सन्दिग्ध से हैं, उनका स्पष्टीकरण शंका-निवारणपूर्वक किया गया है। इसके साथ ही उस समय याज्ञिक- सम्प्रदाय में जो अन्याय्य रूढियां प्रचलित हो चुकी थीं, उनके न्याय्य स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है। इसी प्रकार धर्मसूत्रों में जो वेदविरोधी अंश प्रविष्ट हो चुके थे, उनका प्रबल निराकरण किया है। जहां इस शास्त्र का विषय की दृष्टि से क्षेत्र बहुत विस्तृत है, वहां संकर्षकाण्डान्त शास्त्र आकार की दृष्टि से पांचों दर्शनों के दुगुने से भी अधिक है। इतना ही नहीं, वेदान्त न्याय आदि पांचों शास्त्रों का पठन- पाठन भारतवर्ष में प्रायः होता रहा है, परन्तु मोमांसाशास्त्र के पठन-पाठन का क्षेत्र चिरकाल से सीमित रहा है। सम्प्रति इस शास्त्र के पारदृश्वा विद्वान् दुर्लभ हैं। विद्वद्वर श्री गङ्गानाथ झा का मीमांसा-शाबरभाष्य का अंग्रेजी अनुवाद बहुत वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है। हिन्दी भाषा में प्रयागनिवासी स्व० श्री पं० गङ्गाप्रसाद उपाध्याय ने शाबरभाष्य का अनुवाद लिखा था। वह अद्याववि अप्रक्रोशित हो पड़ा है। अनुवादमात्र से तो मीमांसाशास्त्र का साधारण बोध होना भी कठिन है। मोमांखा- शास्त्र के पठन-पाठन का अधिकारी तो अधीतवेद ही है, यह भाष्यकार शबरस्वामी ने प्रथम सूत्र के व्याख्यान में लिखा है। सम्प्रति वेदाध्ययन की परम्परा नष्ट हो चुको है, इसलिये मोमांसाशास्त्र में वेद शाखा ब्राह्मण और सूत्रग्रन्थों के उद्धृत वचों के आकर-स्थान का भी अध्येता को ज्ञान नहीं होता। ऐसे छात्रों को गुरुमुख से अव्ययन करने पर भी जब विषय स्पष्ट नहीं होता, फिर अनुवादमात्र की सहायता से शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करना तो असम्भव हो है।

Additional information

Weight 5200 g
Dimensions 25 × 17 × 19 cm

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