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Shiksha Sutrani (Sanskrit Only)

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Description

वेद के छः अङ्गों में शिक्षा प्रथम अङ्ग है। बालकों की शिक्षा का वर्षों के यथातथ उच्चारण की धारम्भ इसी शास्त्र से होता है। चाजकल घोर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। इस कारण वर्षों के उच्चारण में बहुविध दोष देखने में आते हैं। वर्षों के ठीक-ठीक उच्चारण को प्रोर बचपन में ही ध्यान न दिया जाए तो यह दोष महाविद्वान् हो जाने पर भी धाजीवन बना रहता है। इसलिए वर्षों के ठीक-ठीक उच्चारण की ओर प्रत्येक माता-पिता आचार्य को पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए। वर्षों के यथातथ उच्चारण न होने से वक्ता जिस अभिप्राय से शब्दों का उच्चारण करता है, श्रोता उस अर्थ को ग्रहण करने में असमर्थ रहता है। श्रतएव प्राचीन आचार्यों ने कहा है-

शब्दो हीनः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह । स वाग्वज्ज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात् ।।

इसी प्रकार अन्यत्र भी कहा है-

स्वजनः श्वजनो मा भूत् सकलं शकलं सकृत् शकृत् ।

अर्थात् स्वजन ( = अपना व्यक्ति) को यदि कोई ‘श्वजन’ इस प्रकार उच्चारण करे तो उसका अर्थ होगा ‘कुत्ते का सम्बन्धी’, एकल ( सम्पूण) का उच्चारण ‘शकल’ किया जाए तो अर्थ हो जाएगा ‘टुकड़ा’। इसी प्रकार यदि सकृत् (एक बार) के स्थान पर ‘शकृत्’ उच्चारण हो जाए तो उसका अर्थ होगा ‘मैला’ (विष्ठा – पाखाना) ।

इसी प्रकार यदि अश्व (घोड़ा) के स्थान पर ‘अस्व’ उच्चारण किया जाए तो अर्थ होगा ‘अपना नहीं’ (न स्वः अस्वः)। इसी प्रकार शास्त्री को ‘सास्त्री’ बोला जाए तो अर्थ हो जाएगा ‘वह स्त्री’ ।

इन कतिपय उदाहरणों से स्पष्ट है कि वर्षों के यथातथ रूप से उच्चा रण न करने से कितना अर्थान्तर हो जाता है। इतना ही नहीं, समस्त बोलियों की उत्पत्ति का यदि इतिहास देखा जाए तो ज्ञात होगा कि एक से दूसरी बोली की उत्पत्ति में वर्णोच्चारण सम्बन्धी दोषों का हो प्रमुख हाथ है।

Additional information

Weight 50 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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