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Shremad Bhagavadgeta Vol 1-4 (Ek Vaidik Rahasy) Mool, Shabdarth, Bhavarth, Hindi Tika Sahit

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Description

श्रीमद् भगवद्गीता का महत्व

श्रीमद् भगवद्गीता भारतीय संस्कृति और धर्म का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का एक गहन माध्यम भी है। गीता के श्लोकों में भक्ति, ज्ञान, और कर्म के सिद्धांतों का समावेश है, जो मानव जीवन में अनुशासन और दिशा प्रदान करते हैं। गीता का शिक्षण उन सभी लोगों के लिए मार्गदर्शक है, जो जीवन के संघर्ष से जूझ रहे हैं या उच्च लक्ष्य प्राप्ति की आकांक्षा रखते हैं।

गीता की शिक्षाएं व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं, जिससे वह अपने चारों ओर के संसार को बेहतर तरीके से समझ सकें। यह ग्रंथ बताता है कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य भोगना चाहिए, फिर चाहे वह सुख का हो या दुःख का। इसलिए, गीता में कर्म का महत्व अत्यधिक है, जो हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, बिना किसी फल की इच्छा के। इस तरह, गीता हमें अपने कार्य और उसके परिणाम के प्रति समर्पण का रास्ता दिखाती है।

श्रीमद् भगवद्गीता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया है। इसके विचार और सिद्धांत न केवल भारत में, बल्कि विश्व के विभिन्न हिस्सों में भी प्रासंगिकता रखते हैं। गीता के आध्यात्मिक सिद्धांतों में मानवता के लिए एक गहन संदेश है, जो न्याय, प्रेम, और करुणा के महत्व को उजागर करता है। इसलिए, गीता का अध्ययन केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि मानसिक और नैतिक विकास के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

गीता और वेदों का संबंध

श्रीमद् भगवद्गीता और वेदों के बीच एक अटूट संबंध है, जो भारतीय तत्वज्ञान और संस्कृति के मूल में स्थित है। गीता, जो महाभारत के भीष्म पर्व का एक हिस्सा है, वेदों से निकले हुए ज्ञान को सरलतम और संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करती है। यह न केवल वेदों के रहस्यमय शिक्षाओं को आसान भाषा में व्याख्यायित करती है, बल्कि इसके माध्यम से उन सिद्धांतों को भी स्पष्टीकरण देती है जो वेदों में प्रतिपादित हैं।

गीता का प्रमुख उद्देश्य मानवता के समक्ष वेदों के ज्ञान का सरल एवं सुलभ रूप प्रस्तुत करना है। वेदों में विशेष प्रकार की जटिलता होती है, जिसमें अनेक शास्त्र, तत्त्व, यज्ञ तथा अनुष्ठान शामिल हैं। गीता इस ज्ञान को एक व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास करती है, जिससे कि संतुलित तरीके से जीने के लिए आवश्यक सिद्धांतों को साधारण शब्दों में समझा जा सके। गीता की शिक्षाएँ कर्म, भक्ति, और ज्ञान के मार्ग को उजागर करती हैं, जो वेदों के प्रमुख विषय हैं।

वेदों का अध्ययन करने वाले व्यक्तियों के लिए गीता का ज्ञान आवश्यक है क्योंकि यह उन्हें नैतिकता, जीवन के उद्देश्य और आत्मा की वास्तविकता के बारे में गहरी समझ प्रदान करता है। जब व्यक्ति वेदों के पाठ और शिक्षाओं में निरंतरता बनाए रखते हैं, तो गीता उनकी व्याख्या में मदद करके ज्ञान के गहरे स्तरों को विस्तारित करती है। इस प्रकार, गीता न केवल वेदों की दृष्टि का विस्तार करती है, बल्कि उन्हें समग्र मानव जीवन में लागू करने की दिशानिर्देशन भी देती है।

व्यास मुनि का योगदान

व्यास मुनि, जिन्हें वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धर्म में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं। उनका प्रमुख योगदान महाभारत का लेखन और श्रीमद् भगवद्गीता के प्रवचन में है। भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन के संवाद को एक गहन ज्ञान स्रोत के रूप में प्रस्तुत करते हुए व्यास मुनि ने गीता को समस्त मानवता के लिए ज्ञान का उपहार बनाया। इस संवाद में व्यापक दार्शनिक विचारों और आध्यात्मिक शिक्षाओं का समावेश है, जो आज भी लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करते हैं।

व्यास मुनि ने न केवल गीता की रचना की, बल्कि महाभारत के माध्यम से इसके संदर्भ को भी रेखांकित किया। यह महाकाव्य संवाद की एक अद्वितीय शैली में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें चरित्रों की जटिलताएं, नैतिक दुविधाएं, और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की गई है। गीता में व्यास मुनि ने जीवन के अर्थ, धर्म, कर्म, और भक्ति की अवधारणाओं को स्पष्ट किया है। इन शिक्षाओं का किसी भी युग में महत्व बना रहा है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका दृष्टिकोण timeless है।

व्यास मुनि का गीता के प्रति योगदान केवल लेखन तक सीमित नहीं है; वे एक विचारक, विद्वान और मार्गदर्शक भी रहे हैं। उनकी विद्वता ने भारतीय दार्शनिकता को एक नई दिशा दी, जिससे अनेक subsequent thinkers और निबंधकारों ने प्रेरणा ली। व्यास मुनि द्वारा स्थापित यह प्रणाली हमें अपने जीवन को बेहतर समझने और धर्म के अनुसार जीने की प्रेरणा देती है। उनके योगदान का गहराई से अध्ययन करने से हमें न केवल एक महान काव्य की कथा मिलती है, बल्कि एक ऐसे ज्ञान का स्रोत भी मिलता है जो आज भी प्रासंगिक है।

गीता के 18 अध्याय

श्रीमद् भगवद्गीता, जो कि 700 श्लोकों में समाहित है, कुल 18 अध्यायों में विभाजित की गई है। प्रत्येक अध्याय एक विशेष विषय पर केंद्रित है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं का स्पष्टीकरण करता है। यह अध्याय न केवल आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, बल्कि नैतिक निर्णय लेने में भी सहायता करते हैं। पहले अध्याय में ‘अर्जुन विषाद योग’ का वर्णन किया गया है, जिसमें अर्जुन अपने कर्तव्यों के प्रति संदेह व्यक्त करता है। यह अध्याय हमें विचारशीलता और संकोच के क्षणों में आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है।

दूसरे अध्याय ‘ज्ञान योग’ में भगवान कृष्ण अर्जुन को ज्ञान की महिमा समझाते हैं। यह अध्याय हमें आत्मा की शाश्वतता और शरीर के क्षणभंगुर होने की सच्चाई से अवगत कराता है। आगे चलकर, तीसरा अध्याय ‘कर्म योग’ में निष्काम कर्म का महत्व बताया गया है। यह सिखाता है कि हमें अपने कार्यों से फल की अपेक्षा किए बिना कर्म करना चाहिए। चौथा अध्याय ‘ज्ञान कर्म संन्यास योग’ में ज्ञान और कर्म का समन्वय किया गया है, जो हमें कार्य करते हुए ज्ञान की प्राप्ति की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

गीता के प्रत्येक अध्याय में जीवन जीने का एक अमूल्य पाठ छिपा है। जैसे कि ‘भक्ति योग’ अध्याय में भक्ति का महत्व बताया गया है, जिससे हम व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में प्रेम और समर्पण का अनुभव करते हैं। गीता के अध्याय ‘ध्यान योग’ में ध्यान और साधना के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है। अंततः, अंतिम अध्याय ‘मोक्ष संन्यास योग’ में मोक्ष की प्राप्ति के लिए आत्म-समर्पण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इस प्रकार, श्रीमद् भगवद्गीता के हर अध्याय का मानव जीवन में अद्वितीय योगदान है, जो हमारे आध्यात्मिक और नैतिक विकास को प्रेरित करता है।

वेदों और अन्य ग्रंथों के प्रमाण

श्रीमद् भगवद्गीता का अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण है कि हम वेदों तथा अन्य प्राचीन और नवीन ग्रंथों के प्रमाण को समझें। वेद भारतीय प्राचीनता के सबसे प्राचीन और प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं। इनमें निहित ज्ञान और सिद्धांत न केवल धार्मिकता को दर्शाते हैं, बल्कि मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डालते हैं। गीता के संदेश को समझने में वेदों का ज्ञान एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है, जो इसे अन्य धार्मिक ग्रंथों से अलग करता है।

गुणात्मक दृष्टिकोण से, वेदों की प्रामाणिकता और उनके सिद्धांत गीता की शिक्षाओं के समर्थन में होते हैं। जब श्रीमद् भगवद्गीता के संदेश की तुलना अन्य ग्रंथों से की जाती है, तो इसकी गहनता और अंतरंगता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इसके अलावा, अनेक धर्मग्रंथों के अध्ययन के दौरान यह देखा गया है कि गीता के अनेकों उपदेशों का आधार वेदों में विद्यमान है। इस तरह, गीता की शिक्षाएं वेदों से व्युत्पन्न होते हुए अपनी प्रामाणिकता को साबित करती हैं।

इतिहास और संस्कृति के लिए वेदों की अहमियत को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। आधुनिक समय में, जब ज्ञान के विभिन्न स्रोतों का विश्लेषण किया जा रहा है, तब वेदों का गहन अध्ययन आवश्यक है, ताकि हम समझ सकें कि कैसे गीता के संदेश को एक स्वस्थ और संतुलित दृष्टिकोण के साथ लिया जा सकता है। इसके माध्यम से हम वर्तमान समय में शिक्षा, नैतिकता, और जीवन के सिद्धांतों को समझने में सशक्त हो सकते हैं, जो कि वेदों और गीता के ज्ञान से प्राप्त होते हैं।

Additional information

Weight 3000 g
Dimensions 23 × 15 × 13 cm

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