Shrikedarbhattavirchitah Vrittratnakara: Chandrika- Sanskrit-Hindi explanation
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Description
छन्द का ही पर्याय वृत्त है। यह ग्रन्थ वृत्त रूपी रत्नों का आकर, खान मा बजाना है, जिसमें मात्रिक, समर्वाणक, विषमणिक, अनेक प्रकार के वृत्तरत्न भरे हैं। अन्त में प्रस्तार विधि से उनको फैलाने की विधि का वर्णन किया गया है। मूलरूप से ‘छन्द’ शब्द से वेद का ग्रहण होता है। लौकिक छन्दों का अवतार या आविष्कार महर्षि वाल्मीकि के मुख से सहसा करुण रस के रूप मैं उद्भुत प्रथम पद्य था, जिसके सम्बन्ध में कहा गया था- ‘नूतनश्छन्दसामवतारः’ वह पद्य इस प्रकार है- ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत् क्रौञ्श्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥’ छन्दःशास्त्र के परिचायक नाम हैं- छन्दोविचिति, छन्दोऽनुशासन, छन्दो- विवृति तथा छन्दोमान, पाणिनीय शिक्षा में इसके महत्व को प्रतिपादित करते हुए कहा गया है- ‘छन्दः पादौ तु वेदस्य’ – वेद का चरणस्थानीय छन्दःशास्त्र है, इसके अभाव में वह पंगु हो जाता है, अथवा उसके अध्येता का ज्ञान लड़खड़ाने लगता है। वेद में प्रमुख रूप से सात छन्दों का प्रयोग मिलता है। इसकी तुलना में लौकिक साहित्य में छन्दों की संख्या की भरमार है। रामानुजाचार्य के गुरु श्री आचार्य यादव प्रकाश ने पिंगलसूत्र की समाप्ति पर छन्दों की परम्परा का परिचायक एक पद्य इस प्रकार उद्धृत किया है- ‘छन्दोज्ञानमिदं भवाद्भगवतो लेभे गुरुणां गुरुस्- तस्माद् दुश्च्यवनस्ततोऽसुरगुरुर्माण्डव्यनामा ततः । माण्डव्यादपि सैतवस्तृत ऋषिर्यास्कस्ततः पिङ्गल- स्तस्येदं यशसा गुरोर्भुवि धृतं प्राप्यास्मदाद्यैः क्रमात् ॥ युधिष्ठिरमीमांसक द्वारा रचित ‘वैदिकच्छन्दो मीमांसा’ के अनुसार छन्दों के अवतरण का क्रम निम्ननिर्दिष्ट है-
Additional information
Weight | 194 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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