Shrimad Bhagwat Geeta Samarpan bhashya
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‘श्रीमद्भगवद्गीता’ का सामर्पण भाष्य मौलिक विवेचना की दृष्टि से उल्लेखनीय है। यह विशुद्ध सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें कर्म सिद्धान्त पर बहुत ही चमत्कारिक और विद्वत्तापूर्ण ढंग से प्रकाश डाला गया है। गीता में कई स्थानों पर ऐसे श्लोक हैं जो मृतक श्राद्ध, अवतारवाद, वेद-निंदा आदि सिद्धान्तों के पोषक प्रतीत होते हैं, परन्तु आपके अलौकिक भाष्य को पढ़ने के पश्चात् वे ही श्लोक वैदिक सिद्धान्तों के पोषक लगने लगते हैं।
मेरी दृष्टि में जब उनका भाष्य आया तो मैंने- “यदा यदा हि धर्मस्य, ग्लानिर्भवति भारत” वाला श्लोक ढूँढा, उनका भाष्य पढ़ा और गद्गद् हो गया। झट खरीदा। प्रथम दृष्टि में मैं भी मन में हंसा था कि गीता में क्या दिखाएंगे। पढ़ा तो जो अपार आश्चर्य और आनन्द मिला वह अवर्णनीय है। इस श्लोक द्वारा पौराणिक विद्वान् अवतारवाद सिद्ध करते हैं। पं० बुद्धदेव जी ने “तदात्मानं सृजाम्यहं” का बड़ा सटीक, वैदिक सिद्धान्तों के अनुरूप और बिना खींच-तान किए अर्थ किया है कि- “मुझसे योगी, विद्वान् परोपकारी, धर्मात्मा आप्त जन जन्म लेते हैं।
सभी अध्यायों के समस्त प्रकरणों में स्थान-स्थान पर, गीता के श्लोकों का अर्थ वैदिक सिद्धान्तों के अनुरूप दिखाई देता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के उपलब्ध भाष्यों तथा इस समर्पण भाष्य में महान् मौलिक मत भेद है। जहाँ अन्य भाष्यों में श्रीकृष्ण को भगवान्, परमात्मा के रूप में दर्शाया है। वहाँ इस भाष्य में उन्हीं कृष्ण को योगेश्वर एवं सच्चे हितसाधक सखा रूप में दर्शाया है। यही कारण है गीता के आर्यसमाजीकरण का। यह उनके निरन्तर चिंतन और प्रज्ञा-वैशारद्य का द्योतक है।
Additional information
Weight | 542 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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