Sourav Vedang Prakash Vol 9
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अथ भूमिका
इस सौवर ग्रन्थ के बनाने का मुख्य प्रयोजन यही है कि जिससे सब मनुष्यों को उदात्तादि स्वरों की व्यवस्था का बोध यथार्थ हो जावे । जब तक उदात्तादि स्वरों को ठीक-ठीक नहीं जानते तब तक लौकिक-वैदिक वाक्यों वा छन्दों का स्पष्ट, प्रिय उच्चारण, गान और ठीक-ठीक अर्थ भी नहीं जान सकते। और उच्चारण आदि के यथार्थ होने के विना लौकिक-वैदिक शब्दों से यथार्थ सुखलाभ भी किसी को नहीं होता । देखो इस विषय में प्रमाणः –
दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्याप्रयुक्तो न तमर्थमाह । स वाग्वज्ज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात् ।।
[ महाभाष्य अध्याय १। पाद १। आह्निक १]
जो शब्द अकारादि वर्णों के स्थान प्रयत्न पूर्वक उच्चारण नियम और उदात्तादि स्वरों के नियम से विरुद्ध बोला जाता है उसको मिथ्याप्रयुक्त कहते हैं, क्योंकि जिस अर्थ को जताने के लिये उसका प्रयोग किया जाता है उस अर्थ को वह शब्द नहीं कहता, किन्तु उससे विरुद्ध अर्थान्तर को कहता है। इसलिये उच्चारण किया हुआ वह शब्द अभीष्ट अभिप्राय को नष्ट करने से वज्ज्र के तुल्य वाणीरूप होकर यजमान अर्थात् शब्दार्थसम्बन्ध
Additional information
Weight | 112 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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