Stenataddhit Vedang Prakash Vol 6
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भूमिका
यह अष्टाध्यायी का पांचवां भाग, और पठन पाठन में आठवां पुस्तक है। मैंने इसको बनाना आवश्यक इसलिये समझा है कि पढ़ने पढ़ानेवालों को ‘स्त्री’ और ‘तद्धित’ प्रत्ययों का भी बोध होना अवश्य उचित है। इसके जाने विना अन्य शास्त्रों का पढ़ना भी सुगम नहीं हो सकता । विशेष तो यह है कि संस्कृत में जैसा तद्धित प्रत्ययों से अधिक बोध होता है, वैसा अन्य से नहीं हो सकता । इसमें थोड़ा सा तो स्त्रीप्रत्यय का प्रकरण है, बाकी दोनों अध्याय तद्धित के ही हैं। इनमें से मुख्य मुख्य सूत्र, जो कि विशेष कर के वेदादि शास्त्रों और संस्कृत में उपयुक्त हैं, उन को लिख कर, भाष्य के वार्तिक, कारिका, उदाहरण, प्रत्युदाहरण भी लिखे हैं, जिस से ‘स्त्रीप्रत्यय’ और ‘तद्धित’ का भी यथावत् बोध हो ।
इस में बहुत कर के ‘उत्सर्ग’ और ‘अपवाद’ के सूत्र हैं। जैसे-शेषिक के अपवाद सब तद्धित सूत्र, और अण का अपवाद इञ, और इञ के अपवाद यत्र आदि प्रत्यय हैं। जो अपवाद सूत्र हैं, वे उत्सर्ग के विषय ही में प्रवृत्त होते हैं, उन से जो बाकी विषय रहता है, सो उत्सर्ग का होता है। परन्तु अपवाद सूत्र के विषय में उत्सर्ग सूत्र कभी प्रवृत्त नहीं होते । जैसे- चक्रवर्ती राजा के राज्य में माण्डलिक राजा, और माण्डलिक के राज्य में कुछ थोड़े ग्रामवाले, उनके विषय में कुछ थोड़ी भूमि वाले अपवादवत्, और बड़े राज्यवाले उत्सर्गवत् होते हैं, वैसे ही सूत्रों में भी समझना चाहिये ।
कोटि कोटि धन्यवाद परमात्मा को देना चाहिये कि जिसने अपनी वेदविद्या को प्रसिद्ध कर के मनुष्यों का परमहित किया
Additional information
| Weight | 315 g |
|---|---|
| Dimensions | 18 × 12 × 2 cm |
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