Tark Sangrah
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श्रीमद् अन्नम्भट्ट विरचित तर्कसङ्ग्रह वैशेषिकदर्शन का प्रकरणग्रन्थ है, क्योंकि लगभग बारह पृष्ठों में निबद्ध अत्यन्त लघुकलेवर वाले इस ग्रन्थ में ग्रन्थकार ने वैशेषिकदर्शन के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों को समझाने का सफल प्रयास किया है। सम्पूर्ण ग्रन्थ संवादात्मक प्रश्नोत्तर शैली में निबद्ध होने से अत्यधिक रोचक बन गया है।
मूलग्रन्थ में ही विषय को अत्यधिक प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने पर भी सम्भवतः उससे असन्तुष्ट ग्रन्थकार ने इसकी ‘तर्कदीपिका’ टीका की स्वयं ही संरचना करके विषय को अपेक्षाकृत और भी अच्छे ढंग से विस्तारपूर्वक समझाया है। पुनरपि छात्रों में दर्शन विषय और वह भी न्यायवैशेषिक के प्रति अत्यधिक क्लिष्टता की भावना का अवलोकन करके अपनी सांख्यकारिका एवं वेदान्तसार पर ‘चन्द्रिका’ हिन्दी व्याख्या डायग्राम के साथ प्रस्तुत करने के बाद इस लघुग्रन्थ पर भी मैंने लेखनी चलाने का विचार किया।
इस विषय की महत्ता इसी से प्रतीत होती है कि आकार में अत्यन्त लघु होते हुए भी अनेक विद्वानों द्वारा इस पर लगभग पच्चीस टीकाओं का लेखन किया गया है, जिन्होंने वैशेषिकदर्शन के साहित्य में अभूतपूर्व समृद्धि की है। जैसा कि इस ग्रन्थ के नाम से ही स्पष्ट है यह वस्तुतः तर्कप्रधान शास्त्र है तथा स्वयं ग्रन्थकार ने इसकी *तर्कदीपिका’ टीका में बौद्ध, मीमांसा, चार्वाक एवं वेदान्तादि अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों को पूर्वपक्ष के रूप में रखते हुए उनका तार्किक पद्धति से खण्डन करते हुए अपने मत को प्रस्थापना की है।
इसलिए मूलग्रन्थ की भावना को हृदयङ्गम करने के लिए ग्रन्थकार द्वारा विरचित ‘तर्कदीपिका’ टीका का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इसी कारण अनेक विश्वविद्यालयों द्वारा तर्कसङ्ग्रह सहित इस टीका को पाठ्यक्रम में निर्धारित भी किया गया है। अतः इसकी उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए इसे अध्ययन में सम्मिलित किया गया है।
Additional information
Weight | 375 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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