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Upanishad Rahasya (Ekadashopnishad)

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Description

विद्या से कुछ न कुछ की प्राप्ति होती है। किसी से धन-सम्पत्ति की, किसी से यश की, किसी से बल- पौरुष की, किसी से सामाजिक, राष्ट्रीय नेतृत्व की । यह सामान्य प्राप्तियाँ हैं। परन्तु मानव स्वभाव प्रायः इन्हीं की कामना करता है। इनके मिलने पर व्यक्ति को लगता है जैसे उसे संसार में सब कुछ मिल गया । मानवता के इतिहास में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि इन सबकी प्रचुरता के पश्चात् भी व्यक्ति सन्तुष्ट नहीं हुआ और वह कुछ ऐसे की प्राप्ति के लिये यत्नशील हुआ कि जिसके मिलने के पश्चात् फिर और कुछ की चाहना नहीं रहे । यह कौन-सी विद्या है जिसके मिलने से व्यक्ति आत्मतुष्ट हो जाता है। हमारा मानना है कि यह अध्यात्म विद्या ही वह परम प्राप्ति है जिससे उस परमतत्त्वं की प्राप्ति या कहें उसका सान्निध्य मिलता है और उसके पश्चात् और कुछ चाहना शेष नहीं रहती । अध्यात्म विद्या की प्राप्ति योग्य, निस्पृह गुरु से आसान हो जाती है। भारतीय दर्शन जो कि मानवीय दर्शन है इसमें सर्वोपरि वेदज्ञान ही है। इसके पश्चात् उपनिषदादि ग्रन्थ हैं जिनमें सरल भाषा में अध्यात्म विद्या का भरपूर ज्ञान भरा हुआ है। हमारे पूर्वज ऋषि, मुनि, विद्वानों ने इस अध्यात्म सागर में गोते लगाकर हमें रत्नों से मालामाल कर दिया है। यह प्रश्न स्वभाविक है कि पूर्व में इतने उपनिषद् उपलब्ध हैं तो न्यास ने ऐसा क्या किया है कि इनकी अपरिहार्यता अधिक है। इनका सम्पादन हमारे ऊपर स्नेहसिक्त हस्त रखनेवाले गहन अध्ययन, मनन व चिन्तन द्वारा जनहितार्थ प्रयासरत आचार्य श्री ओङ्कारजी ने लम्बे समय से इन उपनिषदों रूपी अमृत दुग्ध से जो नवनीत निकाला है उसकी उपादेयता इनके अध्ययन के पश्चात् ही अनुभव होगी । आप पढ़िये और जीवन में दिशा प्राप्त कर आनन्दामृत का पान कीजिये ।

Additional information

Weight 1313 g
Dimensions 22 × 14 × 5 cm

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