Vaidik Nitya Karm Vidhi
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‘दैनिक नित्यकर्म-विधि’ नामक दैनिक कर्मों की विधि और मन्त्रों के अर्थ सहित प्रकाशित रामलाल कपूर ट्रस्ट ने ज्येष्ठ संवत् २०२८ (मई १९७१) में ‘दैनिक नित्यकर्म-विधि’ की पांच सहस्र प्रतियाँ छपवाई थीं। ट्रस्ट अपने प्रारम्भिक काल से ही ‘सन्ध्योपासनविधिः’ (अर्थ सहित) तथा हवनमन्त्र छाप रहा है। पाठकों की यह माँग रहती है कि सन्ध्या और हवन के सब मन्त्र एक साथ एक पुस्तक में उपलब्ध कराए जाएं। अतः हमने परीक्षण के तौर पर पूर्व प्रकाशित ‘वैदिक-नित्यकर्म-विधि’ का यह मूलमात्र संस्करण प्रकाशित किया था।
इस ग्रन्थ में दैनिक कर्मों की विधि और मन्त्रों के साथ स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण, बृहद्-हवन, पक्षेष्टि तथा वैदिक-संगठन-सूक्त के मन्त्र, दैनिक- यज्ञ-प्रार्थना और कुछ भजन दिए गए हैं। हमारे इस प्रयत्न को आर्य जनता ने सोत्साह अपनाया। परिणामतः इस पुस्तक के पन्द्रह संस्करण समाप्त हो चुके हैं। इसके पहले, दूसरे तथा सातवें संस्करणों की पांच-पांच सहस्त्र प्रतियाँ, तीसरे से दसवें (सातवें को छोड़कर) संस्करणों की दस-दस सहस्र प्रतियाँ, तेरहवें व चौदहवें की ग्यारह ग्यारह सहस्त्र प्रतियाँ और पन्द्रहवें संस्करण की बारह सहस्त्र प्रतियाँ छापी गई थीं। अब वर्तमान सोलहवें संस्करण की बीस सहस्त्र प्रतियाँ छापी गई हैं।
हम आर्य जनता के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उसने उदारता और उत्साह पूर्वक ट्रस्ट के प्रकाशनों को अपनाया है।
Description
अथ वैदिक-नित्यकर्म-विधिः
इस पुस्तक में आर्यों के प्रतिदिन के नित्य कर्त्तव्य कर्मों का विधान है। वैदिक मन्तव्य के अनुसार प्रातः काल से लेकर शयनकाल पर्यन्त जो-जो विशेष नैत्यिक कर्म करने होते हैं, वे निम्नलिखित हैं-
प्रातःकाल के कर्त्तव्य
१. शयन से उठकर ईश्वर
५. अग्निहोत्र
की स्तुति-प्रार्थना
६. स्वाध्याय
२. शौच, दन्तधावन, व्यायाम
७. पितृ-यज्ञ
३. स्नान
८. बलिवैश्वदेव-यज्ञ
४. सन्ध्योपासना
९. अतिथि-यज्ञ
सायंकाल के कर्त्तव्य
१. अग्निहोत्र
५. अतिथि-यज्ञ
२. सन्ध्योपासना
६. शयन से पूर्व शिव-
३. पितृ-यज्ञ
संकल्प की प्रार्थना
४. बलिवैश्वदेव-यज्ञ
इसके साथ ही इसे अधिक उपयोगी बनाने के लिए इस ग्रन्थ में आर्यसमाज के साप्ताहिक सत्संग में प्रयुक्त होने वाले स्वस्तिवाचन, शान्तिकरण और बृहद्-हवन के मन्त्र भी दे रहे हैं। अमावस्या और पूर्णिमा को करने योग्य पक्षेष्टि के मन्त्र तथा कुछ प्रार्थना और भजन भी दे रहे हैं।
इस पुस्तक में लिखे गए कर्मों के सब मन्त्रों का अर्थ हमारी बड़ी ‘वैदिक-नित्यकर्म-विधि’ में देखें। यहाँ केवल उक्त कर्मों के मन्त्र, और उनके करने की विधि ही लिखी है।
नित्यकर्मों का फल- इन नित्यकर्मों को यथाविधि करने से ज्ञान की प्राप्ति, आत्मा की उन्नति और आरोग्यता होने से शरीरसुख और व्यवहार और परमार्थ की सिद्धि होती है। इनसे मनुष्य जीवन के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की सिद्धि होती है।
Additional information
Weight | 150 g |
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Dimensions | 18 × 12 × 1 cm |
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