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Vedant Darshan

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Description

इस ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषयों का निष्कर्ष
जगत् के उत्पत्ति आदि व्यवहार में परमात्मा का निमित्त कारण होना और परमात्मा के अधीन प्रकृति का उपादान कारण कहा जाना। विविध वैदिक नामों से एक परमात्मा का उपास्य होना, जगत् की विविधता का कारण जीवात्माओं के विविध कर्म बतलाया जाना। क्षणिकवाद आदि मतों में जगत् की उत्पत्ति का अयुक्त होना, जीवात्मा का उत्पत्तिधर्मरहित नित्य कर्ता-भोक्ता होना, परमात्मा का जीवात्मा में प्रतिबिम्ब का निषेध, जीवात्मा के संग से परमात्मा में परिणाम का न होना। मोक्षार्थ जब तक आयु है अर्थात् जीवनपर्यन्त परमात्मध्यान करना और मोक्ष में जीवात्मा का ब्राह्मधर्म से या स्वकीय चैतन्यरूप से वर्तमान रहना, मुक्तात्मा में जगद्व्यापाररहित साङ्कल्पिक ऐश्वर्य का आविर्भाव, मोक्ष से ज्ञानानुसार ब्रह्मानन्दभोगप्राप्ति ।
अध्यायों के विषय का सार
प्रथम अध्याय – जगत् की उत्पत्ति में परमात्मा का निमित्त कारण
और अव्यक्त प्रकृति का परमात्मा के अधीन उपादान कारण होना। अध्यात्मयोग से परमात्मा आनन्दमय आदि भिन्न-भिन्न नामों से हृदय में अनुभव करने योग्य और उपासनीय है, विश्व को अपेक्षित कर परमात्मा भूमा आदि नामों से चिन्तन करने योग्य है। उपासना और वेद पढ़ने में सब वर्णों का अधिकार न कि वर्णप्रतिबन्ध किन्तु चरित्र का प्रतिबन्ध तो सब वर्णों में समान है।
द्वितीय अध्याय – जगद्रचना में प्रकृति का उपादान कारण होना,
अव्यक्त आदि जड़ों की स्वतन्त्र प्रवृत्ति असम्भव। जीवात्माओं के विचित्र कर्मों से जगत् की विचित्रता, क्षणिकवाद आदि अवैदिक मतों का खण्डन, जीवात्मा का उत्पत्तिधर्मरहित नित्य कर्ता आदि होना, शरीर और उसके अन्दर इन्द्रिय आदि की रचना परमात्मा के द्वारा।
तृतीय अध्याय – पुनर्जन्म में जीवात्मा का सूक्ष्म शरीर के साथ जाना और उसकी जाग्रत, स्वप्न आदि अवस्थाएं। परमात्मा का प्रकाशस्वरूप होना और उसका जीवात्मा प्रतिबिम्ब होने का निषेध तथा जीवात्मा में व्याप्त हुए का भी अवस्थान्तर से रहित होना, परमात्मा का अनन्त होना, ब्रह्म ही एक उपास्य है, मोक्ष में जिसका जितना ज्ञान उसको उतना आनन्दभोग मिलना, मोक्ष की प्राप्ति में अनेक जन्मों का प्रतिबन्ध न होना।
चतुर्थ अध्याय – मोक्षार्थ आयुपर्यन्त परमात्मध्यान, प्रतीकोपासना
का निषेध, स्थूल शरीर के नष्ट होने पर सूक्ष्म शरीर और प्राणों का जीवात्मा के साथ अन्य देह में जाना, ब्रह्मोपासक विद्वान् का रश्मियों का अनुसरण कर ब्रह्मलोकगमन, जीवात्मा का दोनों प्रकार की इन्द्रियों के सम्मूच्छित हो जाने से अर्चि आदि क्रमविशेषों से प्रेरित होना, मोक्ष में मुक्त का ब्राह्मधर्म से या स्वकीय चैतन्यरूप से अवस्थित होना और वहां जगदुत्पत्ति आदि कार्यरहित साङ्कल्पिक ऐश्वर्य का आविर्भाव ।

Additional information

Weight 416 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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