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Vedantsaar

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वेदान्त दर्शन भारतीय दर्शन ही नहीं, विश्व की दर्शन-पद्धतियों में शिरोमणि है। यों तो रामानुज, निम्बार्क, मध्व एवं वल्लभ की दर्शन-पद्धतियाँ भी वेदान्त के ही अन्तर्गत आती हैं, किन्तु आज प्रायः वेदान्त से शङ्कराचार्य द्वारा प्रतिपादित वेदान्त का ही आशय ग्रहण किया जाता है। इसका कारण शाङ्कर वेदान्त दर्शन की स्पष्टता, तर्क-सम्मतता, समन्वयता एवं शङ्कराचार्य की प्राञ्जल शैली है। इन्हीं विशेषताओं के कारण वेदान्त दर्शन भारतीय ही नहीं, विदेशी समीक्षकों के द्वारा भी मुक्तकण्ठ से प्रशंसित हुआ है। थीबो’ ने वेदान्तदर्शन की प्रशंसा करते हुए लिखा है-
…Neither those form of the Vedānta which diverge from the view represented by Śankara, nor any of the non Vedāntic system can be compared with the socalled orthodox Vedānta in boldness, depth and subtility of speculation.¹
वेदान्तसार शाङ्करवेदान्त-परम्परा का अनुपम ग्रन्थ है। शङ्कराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्रभाष्य, गीताभाष्य, उपनिषद्भाष्य एवं प्रकरण-ग्रंथों में वेदान्त के जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था, वेदान्तसार के प्रणेता सदानन्द ने अपने ग्रन्थ में उन्हीं का संक्षिप्त एवं स्पष्ट निरूपण मौलिकता के साथ प्रस्तुत किया है। वेदान्त के शङ्कराचार्य-परवर्ती आचार्यों द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में वेदान्तसार को जो लोकप्रियता एवं प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है, मेरे विचार से वह पञ्चदशी के अतिरिक्त किसी दूसरे ग्रन्थ को नहीं। १५वीं शताब्दी में प्रादुर्भूत आचार्य सदानन्द के दार्शनिक विचारों का विश्लेषण करने से पूर्व वेदान्त की पृष्ठभूमि एवं आचार्यपरम्परा का उल्लेख करना अपेक्षित होगा।
वेदान्त की पृष्ठभूमि एवं आचार्य-परम्परा
वेदान्त की आचार्य-परम्परा का आरंभ यद्यपि बादरि से ही माना जा सकता है, किन्तु वेदान्त के सिद्धांत बीज ऋग्वेद संहिता से ही मिलने आरम्भ हो जाते हैं। इस प्रकार वेदान्त की मूल पृष्ठभूमि को वैदिक वाङ्मय में खोजना असमीचीन नहीं कहा जा सकता। श्रीमद्भागवत’ का कथन – “वेदाः ब्रह्मात्मविषयाः” उक्त विचार का ही समर्थक

Additional information

Weight 300 g
Dimensions 22 × 14 × 2 cm

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