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Vedon Mein Paryavaran Vigyan

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Description

व्यवहार की मर्यादाओं का उल्लङ्घन कष्ट का कारण है और इसके निर्माता हम स्वयम् हैं। किसी दैवीय शक्ति का प्रकोप नहीं है, यह पर्यावरण प्रदूषण मानव ने अपने स्वार्थ के लिए ज्यों-ज्यों बिना विचारे प्रकृति का दोहन किया है, त्यों-त्यों यह असन्तुलन बढ़ता गया है और यही असन्तुलन इस समस्या का जनक है। हम हमारे शरीर के गठन तथा इसमें चलनेवाली प्रक्रिया का रासायनिक विश्लेषण करें तो यह तथ्य स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है कि शरीर में किसी भी एक तत्व का आधिक्य या न्यूनता समस्त शरीर का सामञ्जस्य बिगाड़कर रुग्णता की ओर ले जाता है। यही सबकुछ प्रकृति के साथ हो रहा है।
आदिज्ञान वेद ने हमें जीवन जीने के लिए मर्यादित जीवनचर्या व व्यवहार का प्रकार ही नहीं बताया इसके सन्तुलन का पाठ भी पढ़ाया। हमने अध्ययन की वृत्ति का त्याग कर अपना ही अकल्याण किया है। प्रकृति जिसके सहारे हमारा भौतिक जीवन चलता है इसके उपयोग, संरक्षण व वर्धन की सर्वोत्तम विधि वेदों के अन्तर्गत विद्यमान है। अब तथा भविष्य में हम अपना हित चाहें तो यही मार्ग व व्यवहार अपनाना होगा।
प्रस्तुत पुस्तक में सत्यान्वेषी प्रकृति के सचेत व जिज्ञासु लेखक
ने लघु कलेवर के अन्तर्गत विश्वव्यापी प्रदूषण समस्या पर विचार ही नहीं किया है अपितु इसके समाधान का चिरन्तन वैदिक समाधान प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक हमें हमारे भले की दिशा प्रदान करती है। आशा है इसके पठन व व्यावहारिक उपयोग से एक बहुत बड़ी समस्या के समाधान में हम सहभागी बन सकेंगे।

Additional information

Weight 213 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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