Vidur Niti Padarth Vistrit Vyakhya Sahit
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Description
नीति-शस्त्र का ही दूसरा नाम धर्म-शास्त्र है। वैदिक विचारधारा के अनुसार ‘धर्म’ शब्द प्रधान रूप से कर्तव्य का बोधक है। अतः धम-शास्त्र और कत्तंव्य-शास्त्र दोनों परस्पर पर्याय हैं। धर्म-शास्त्र में उन सत्र विषयों का संविधान दिया गया है, जिनकी पूर्ति करना मानव मात्र का जन्म से ले कर मृत्यु पर्यन्त स्व-पर-समाज-देश-राष्ट्र-अन्ताराष्ट्र के सम्बन्ध में कत्र्तव्य होता है।
धर्म-शास्त्रकारों ने मानव-समाज को गुण-कर्म-स्वभाव के अनुसार ‘ब्राह्मण-भत्रिय-वैश्य-शूद्र’ इन चार विभागों में बांटकर उन के कत्र्तव्यों का विधान किया है। तदनुसार राज्य एवं उससे संबद्ध कर्तव्य प्रधानतया क्षत्रिय वर्ग से संबद्ध है। इसलिए धर्म-शास्त्रकारों ने अपने धर्म-शास्त्रों में राजधर्म अथवा राजनीति का विस्तार से वर्णन किया है। मानव समाज के सर्व प्रथम संविधान का रचयिता स्वायम्भुव मनु का उपदेश उसके शिष्यों द्वारा लोक में विस्तृत हुआ । उन में वर्तमान ‘मनुस्मति’ भृगु-प्रवचन मानव मात्र के प्राचीनतम संविधान का निदर्शक ग्रन्थ है। नारद-प्रवचन में केवल राजनोति का ही वर्णन मिलता है।
धर्मशास्त्रों के द्वारा प्रोक्त सामान्य मानत्र संविधान के अन्तर्गत राज- नीति-विषयक संविधान का अनेक अर्थ-शास्त्रकारों ने पृथक् रूप से बड़े विस्तार से प्रवचन किया है। भारतीय वाङ्मय में अर्थशास्त्र शब्द राज- नीति-शास्त्र का बोधक है,’ न कि वर्तमान में प्रसिद्ध केवल अर्थ घन – सम्पत्ति-संबन्धी शास्त्र का। वर्तमान में अर्थशास्त्र नाम से कहा जाने वाला अंश भी प्राचीन विस्तृत विषय वाले अर्थशास्त्र का एक भाग है।
Additional information
Weight | 600 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 3 cm |
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