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Yagy Prasad

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Description

यज्ञ प्रसाद
यज्ञ के महत्त्व का हृदयग्राही प्रेरक विवेचन
जैसे हम भौतिक अग्नि में हव्य की आहुति देकर अग्निहोत्र करते हैं, वैसे ही अन्य क्षेत्रों में भी अग्निहोत्र हो रहा है। मनुष्य के शरीर में प्राणाग्निहोत्र हो रहा है। पुरूष ही अग्नि है, वाणी उसकी समिधा है, प्राण धुंआ है, जिह्वा ज्वाला है, चक्षु अंगारे हैं, ओज चिन्गारियां हैं। इस अग्नि में अन्न की आहुति पड़ती है, उससे रेतस् रूप फल उत्पन्न होता है।
बहुत समय से अप्राप्त इस पुस्तक में स्वामी जी ने यज्ञ की अनेक शिक्षाओं का विवेचन किया है। पुस्तक के विषय हैं-यज्ञ द्वारा प्रभु की स्तुति, महर्षि के शब्दों में-यज्ञ का स्वरूप, यज्ञ-जनता के सुख के लिए, यज्ञ केवल कर्मकाण्ड नहीं, यज्ञ परिधि में कर्म, ज्ञान, उपासना- तीनों, महाभारत के पाँच महान् यज्ञ, जीवन व्यापी 16 यज्ञमय संस्कार और दैनिक पंचमहायज्ञ, गीता का यज्ञ चक्र, यज्ञ का धात्वर्थ, जीवन यज्ञमय बनाओ, यज्ञों के विविध रूप, तीन ऋणों से मुक्ति का उपाय, ज्ञान यज्ञ की रूपरेखा, उपासना यज्ञ, यज्ञ की अग्नि-शिखाएँ प्रेरणा का स्त्रोत, यज्ञ-याग से बह्मदर्शन इत्यादि ।
आईये यज्ञ प्रसाद ग्रहण करें।
विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द

Additional information

Weight 111 g
Dimensions 18 × 12 × 1 cm

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