Yajur Veda Swadhyay Tatha Pashu Yagya Sameeksha
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Description
सम्पूर्ण यजुर्वेद पर मषि दयानन्द का भाष्य है। भाष्य में आधिभौतिक, श्राधिदैविक और आध्यात्मिक अर्थ यत्र तत्र किये गए हैं। साथ ही आधिभौतिक आदि वैवत-पदों के अवान्तर नानाविध अर्थों पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है। उदाहरणार्थ आधिभौतिक दृष्टि में- “अग्नि” देवत-पद द्वारा ज्ञानाग्नि-सम्पन्न व्यक्ति, राजा, सेनानी, ब्राह्मण, अग्रणी नेता श्रादि का; आधिदैविक दृष्टि में – “अग्नि” दैवत-पद द्वारा आग, विद्युत्, सूर्य, द्युलोक, तथा सुवर्ण, रजत, लोहादि आग्नेय खनिज पदार्थों का; और आध्यात्मिक दृष्टि में “अग्नि” दैवत-पद द्वारा ज्ञान, जीवात्मा तथा परमात्मा आदि का भी वर्णन मन्त्रों में यत्र-तत्र दृष्टि- गोचर होता है। इसलिये महषि का वेदभाष्य स्थान-स्थान में दुरूह भी प्रतीत होता है। परन्तु मषि की इस वेदार्थ-शैली के अनुसार ही वेद सब सत्य विद्याओं के मूल- स्रोत प्रतीत होने लगते हैं।
२. वर्तमान ग्रन्थ में अश्वमेधवरक मन्त्रों से अतिरिक्त मन्त्रों के अर्थ, मषि- प्रर्दाशत अर्थों की छाया में ही किये हैं। परन्तु इन अर्थों को सुगम, स्पष्ट, तथा संक्षिप्तरूप में प्रर्दाशत किया है। कहीं-कहीं अर्थों को नानाविधता भी दर्शाई है। जैसे कि- निरुक्ताचार्य यास्क ने “इति नेरुक्ताः इति याज्ञिकाः, इति नैदानाः, इत्यात्मविदः, इत्यधिदैवतम्, अथाध्यात्मम्” द्वारा मन्त्रगत अर्थों के वैविध्य को दर्शाया है।
३. महोधर आदि भाष्यकर्ताओं ने यजुर्वेद में वैदिक शब्दों के लोक-प्रसिद्ध अर्थों के आधार पर याज्ञिक अर्थ किये हैं, जो कि आपाततः प्रतीत होते है। यथा रेतोधाः (मन्त्र क्रमांक १७४), उत्सक्थ्याः, गुदम् (क्रमांक १७५), गभे, पसः (क्रमांक १७६), नारी (क्रमांक १८३) इत्यादि । वर्तमान ग्रन्थ में ऐसे शब्दों के अर्थों पर विशेष प्रकाश डाला है।
४. याज्ञिक पद्धति के आधार पर यजुर्वेद के मन्त्रों के जो अर्थ किये जाते हैं, उन में पशुहिंसा और मांसाहुतियों का भी वर्णन मिलता है। इस पद्धति की अप्रामाणिकता दर्शाई गई है।
५. अश्वमेध सम्बन्धी गौण तथा मुख्य वर्णन, यजुर्वेद के अध्याय २० वें से ३० वें तक हुआ है। मुख्य वर्णन सम्पूर्ण २३ वें अध्याय में, तथा अध्याय २५ वें के २४ से ४५ मन्त्रों में, तथा श्रध्याय २६ वें के ६ से २४ मन्त्रों में हुआ है।
Additional information
Weight | 355 g |
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Dimensions | 22 × 14 × 2 cm |
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