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Yajurveda – Bhashyam Maharshidayananda Saraswati Swami Nirmittam Sanskritaryabhashabhyam Samanvitam Part 1 – 2

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Description

यह ऋषि दयानन्द कृत यजुर्वेद भाष्य अध्यायों का संशोधित द्वितीय संस्करण है. जिसे महर्षि के हस्तलेखों से मिलान करके तैयार किया गया है। साथ ही ऋषि के अनन्य भक्त, वेदों के प्रकाण्ड विद्वान्, तपोमूर्त्ति श्री पण्डित ब्रह्मदत्त जी जिज्ञासु कृत विवरण भी है, जिसमें ऋषि, देवता, छन्द, पदपाठ, पदार्थ, अन्वय, भावार्थ एवं मूल हस्तलेखों इत्यादि विषयों पर बड़ी ही मार्मिक तथा विद्वत्तापूर्ण टिप्पणियां हैं। व्याकरणानुसार स्वर प्रक्रिया, त्रिविध प्रक्रिया, आर्ष प्रमाणों से ऋषिभाष्य की पुष्टि एवं सायण-महीधरभाष्यों की त्रुटियों का दिग्दर्शन इस ग्रन्थ की विशेषतायें हैं । ग्रन्थ के आरम्भ में १५० पृष्ठ की भूमिका है जिसमें उपर्युक्त वेद विषयों का गम्भीर और खोजपूर्ण विवेचन है। सर्वविधज्ञान का भण्डार और सब लौकिक तथा पारमार्थिक व्यवहारों का प्रकाशक वेद है, यह सर्व ऋषि-मुनियों का सिद्धान्त है। अतएव सब यास्कादि प्राचीन ऋषि-मुनियों का यह सिद्धान्त हैकिप्रत्येकमन्त्र का अर्थ आध्यात्मिकअधियाज्ञिक-आधिदैविक तीनों प्रक्रियाओं में होता है। स्वामी जी महराज ने भी सब मन्त्रों के संस्कृत पदार्थ में अत्यन्त कौशल से प्राय: करके तीनों प्रकार के अर्थों को सूक्ष्म रीति से दर्शाने का प्रयास किया है। इसी लिये स्वामी जी ने यास्क की भान्ति सर्व प्रक्रियाओं में घटित होने वाला (अर्थात् त्रिविधार्थगर्भित) संस्कृत पदार्थ पृथकू रूप से दर्शाया है और केवल अन्वयानुसारी भाष्य नहीं बनाया। श्री स्वामीजी महाराज के वेदभाष्य की यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विशेषता है । जिसे बहुत कम विद्वान् अनुभव करते हैं। कहीं-कहीं अन्वय तथा भावार्थ से भी तीनों प्रकार के अर्थों की ध्वनि निकलती है। अन्वय प्राय: करके एक या दो प्रक्रियाओं में ही घटित होता है, इसलिये उसको पृथक् रखा है । भाषापदार्थ में संस्कृतपदार्थ को अन्वयपूर्वक लाने का यत्न किया गया है, किन्तु उससे तीनों प्रकार के अर्थों की विस्पष्ट प्रतीति नहीं होती । गुरुवर ने पांच अध्याय तक प्रत्येक मन्त्र में आचार्य दयानन्द प्रदर्शित त्रिविधप्रक्रिया का दिग्दर्शन कराया है, इसी प्रकार आगे भी बुद्धिमान् पाठक स्वयं समझने का यत्न करें। निःसन्देह श्री स्वामीजी के भाष्य में आध्यात्मिक अर्थ की प्रधानता है, और यह भाष्य एक प्रकार से ‘सूत्ररूप ‘ है । गुरुवर जिज्ञासु जी के लगभग ३१ वर्ष के वेदभाष्यसम्बन्धी परिश्रम और अनुभव का यह फल है। वैदिक वाड्मय के शोध में लगे विद्वानों / शोधछात्रों और वेदाङ्ग के अध्येता छात्रों को भी इस ग्रन्थ के पढ़ने से अनुपम लाभ होगा। साथ ही सामान्य स्वाध्यायशील वेदार्थ – जिज्ञासु भी इसके स्वाध्याय से विशेष रूप से वेदार्थ को हृदयङ्गम कर सकते हैं। आईये, ऋषि दयानन्द सरस्वती द्वारा प्रदत्त आर्यसमाज के तृतीय नियम- ‘वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।’ को जीवन में उतारने का प्रयास करें।

Additional information

Weight 2500 g
Dimensions 26 × 19 × 12 cm

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