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Yajya mahavigyan

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Description

यज्ञ-महाविज्ञान है। सब वेद है। वेद सर्व विद्यामव हैं। अतः को सिद्धि करता है। यज्ञ का प्राधार वेद मन्त्रों में अनन्त सामर्थ्य है। इसीलिए कहा गया है कि– यं यं कामयते कामं तं तं घेवेन साधयेत । असाध्यो नास्ति पत्किञ्चित् बह्मणो हि फलं महत् ।। अर्थात् समत्त कामनाओं की पूत्ति की मसाधना वेड के द्वारा सिद्ध करें। वेद के सम्मुख ससाध्य कुछ नहीं है। यहो वेद की महान् सामर्थ्य है अतः वेद का फल अपूर्व है। उपरोक्त वाक्य वेद के यज्ञ-विज्ञान के महत्व को प्रकट कर रहे हैं। अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः (यजुर्वेद अ. २३।६३) यज्ञ हो समस्त संसार की नाभि है केन्द्र है उत्पत्ति स्थान है- इसी में समस्त लोक-लोकान्तर बंधे हुए हैं। इसोलिये- यत्कामास्ते बुहुमस्तन्नो अस्तु (यजुर्वेद २३।६५) अर्थात् जिस कामना के लिये हम यज्ञ करें वह कामना हमारी पूर्ण हो फलीभूत हो- यह वेद ने कहा है। हमने यज्ञों के द्वारा वृद्धि वृद्धि, श्री वृद्धि, गूगों में वाणी की प्राप्ति, विविध प्रकार के रोगों की निवृत्ति, मानसिक रोग, लकवा, वायु रोग, कफ रोग, श्वास, दमादि निवृत्ति, हृदय रोग, बशक्ति आदि अनेक रोगों में प्रन्द्रत लाभ प्राप्त किया। भीषण प्रचण्ड गर्मी में यज्ञ से तापमान में न्यूनता देखी । अतिवृष्टि और अनावृष्टि दोनों का निवारण यज्ञ से अनुभूत किया। जो वृक्ष फल नहीं देते थे उनमें यज्ञ से फलोत्पत्ति देखी। इन सब अनुभवों के ग्राधार पर यज्ञ के विविध प्रकार के विज्ञान के प्रति विश्वास जायत् हुआ धौर यज्ञ के विविध विज्ञान के प्रति अग्रसर होने के लिये इस यज्ञ-महाविज्ञान पुस्तक का प्रकाशन किया ।

Additional information

Weight 200 g
Dimensions 21 × 30 × 2 cm

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