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Yaska Nighantu

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Description

‘ऋषिभ्यः नमः’ इस सूक्ति के अनुसार ऋषि ऋण से उऋण होने के लिये यह यास्ककृत लघु ग्रन्थ निघण्टु (श्लोकीकृत) प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष हो रहा है। यह प्राच्य-विद्यानुसन्धान केन्द्र का वार्षिक पञ्चमाङ्क है। यह ग्रन्थ बालकोपयोगी है, क्योंकि बालकों को वेदार्थ समझने के लिये वैदिक-शब्दों का परिज्ञान अत्यन्त आवश्यक है। वैदिक- शब्दों को स्मरण करना अति दुष्कर है। इस कठिनाई को दूर करने हेतु आशुकवि ग्राचार्य विशुद्धानन्दजी वेदवाचस्पति (केन्द्राध्यक्ष) ने निघण्टु की शिखरिणी आदि गेय छन्दों में ३० वर्ष पूर्व ही रचना कर दी थी, परन्तु प्रर्याभाव के कारण प्रकाशित न हो सका ।
निघण्टु-परिचय – निरुक्त में यास्काचार्य ने सर्वप्रथम निघण्टु पद की व्युत्पत्ति प्रदर्शित की है।
वैदिक-शब्दों के अर्थ को निश्चितरूप से जाना जाता है और वे वेद- मन्त्रों से चुने गये हैं। इन शब्दों को समझ लेने पर वेद का अर्थ सरलता, से हो सकता है, इसलिये इसे निघण्टु कहा जाता है।
‘निघण्टु’ शब्द नि पूर्वक गम् धातु से ‘सितनि.’ इस उणादिसूत्र से तुन् प्रत्यय होकर ‘ग’ के स्थान पर ‘घ’, ‘त’ के स्थान पर ‘ट’ होकर सिद्ध होता है।
इस लघु ग्रन्थ में ५ अध्याय हैं। प्रथमाध्याय में १७ खण्ड, द्वितीया- ध्याय में २२ खण्ड, तृतीयाध्याय में ३० खण्ड, चतुर्थाध्याय में ३ खण्ड और पञ्चमाध्याय में ६ खण्ड हैं। इनके शब्दों का योग १७७३ है। प्रथम तीन अध्याय का नाम नघण्टुकाध्याय है। चतुर्थाध्याय को नंगमाध्याय नाम से तथा पञ्चमाध्याय को ‘देवताध्याय’ नाम से कहा जाता है। इसमें श्लोकों की संख्या १४० है।
कृतज्ञता प्रकाशन – सर्वप्रथम परमपिता प्रभु का कोटिशः धन्यवाद, है, जिससे हम सब वेदवाणी एवं ऋषीप्रणीत ग्रन्थों का प्रचार-प्रसार कर सकें । केन्द्राध्यक्ष श्री आचार्य विशुद्धानन्दजी के प्रति आभार प्रकट करने हेतु शब्दराशि-चयन करने में असमर्थ सा हो रहा हूं।

Additional information

Weight 191 g
Dimensions 22 × 14 × 1 cm

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