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Yog arya bhasya

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महर्षि पतञ्जलि के योग शास्त्र पर महर्षि व्यास का सबसे प्राचीन भाष्य मिलता है। उसी को आधार बनाकर सैंकड़ों विद्वानों ने अपने भाष्य वा टीकाएं योगदर्शन पर की हैं। अज्ञान वा पक्ष-पात के कारण व्यासभाष्य के तथा मूलसूत्रों के विरुद्ध भी लिखने का साहस अनेक विद्वान् कर बैठे, जो वैदिक सिद्धान्तों के विरुद्ध और मिथ्या है। ऐसी टीका तथा भाष्यों से लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है। वैदिक विद्वान् पं० आर्यमुनि के “योगार्य-भाष्य” की यही सबसे बड़ी विशेषता है कि यह वैदिक सिद्धान्तों के सर्वाधिक अनुकूल है। इस युग के महान् योगी, प्रकाण्ड पण्डित, पूर्ण विद्वान्, पूर्ण जितेन्द्रिय, पूर्ण ब्रह्मचारी, महर्षि दयानन्द सर-स्वती जी थे । उन द्वारा प्रतिपादित वैदिक सिद्धान्तों के अनुरूप पं० आर्यमुनि जी अपने समय के एक मर्मज्ञ विद्वान् थे । ऐसे आर्य विद्वान् तो अनेक हुये हैं, जिन्होंने एक दो शास्त्रों पर अपने भाष्य किये किन्तु ऐसे विद्वान् केवल पं० आर्यमुनि जी हैं जिन्होंने अपनी लेखनी सभी शास्त्रों पर उठाई और अपने जीवनकाल में ही सभी छवों दर्शनों पर पूर्ण भाष्य किये तथा उनके सभी दर्शनों पर आर्यभाष्य प्रकाशित भी हुए। बहुत समय से उनके दर्शनों के भाष्य उपलब्ध नहीं। आर्यजनता को यह अभाव वर्षों से खटकता था । इसी प्रभाव को दूर करने के लिये महामहोपाध्याय पं० चार्य मुनि जी के षड्दर्शनों के भाष्य शीघ्र ही प्रकाशित करने की योजना “हरयाणा साहित्य संस्थान गुरुकुल झब्बर” ने बनाई है। उसी योजना के अनुसार “योगार्यभाष्य” पाठकों की सेवा में उपस्थित

Additional information

Weight 500 g
Dimensions 21 × 29 × 2 cm

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